Thursday, November 20, 2008

चलने से मंजिल मिलेगी

जिंदगी के इस सफर में चल चला चल चल !
ओ मुशाफिर चल चल चला चल!
चलने से ही तुझे मंजिल मिलेगी!
मंजिल ख़ुद चल कर नही आती ,
ख़ुद को चलकर ही जाना है!

थक के गर तू रुक गया तो ,
कैसे राह कटेगी!
कैसे बडेगा सफर ये आगे ,
कैसे मंजिल मिलेगी !

मुश्किलों में भी राह मिलती है ,
कभी राह नही थमती है !
थम जाता है मुसाफिर पर,
वक्त घड़ीया नही थमती है !

धुप धुप नही है जिंदगी में ,
कही ना कही तो छाव में दोपहर भी मिलेगी!
शाम ही शाम नही है जिंदगी में ,
हर शाम को भोर भी मिलती है!

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