Thursday, October 23, 2008

शादी का लड्डू

लोग शादी की सालगिरह मानते है ,
मुझे बड़ा आश्चर्य होता है !
की वो इस दुर्घटना को क्यो नही भूल पाते है !
मुझे जब भी इस दुर्घटना का ख़याल आता है !
तो सर से पैर तक काँपने लगता हूँ ,
थके हुए बुडे़ बैल की तरह हाँपने लगता हूँ !
पलभर के लिए तो भयभीत हो जाता हूँ !
हक्के बक्के भूल जाता हूँ कुछ पल के लिए बेहोश हो जाता हूँ !

जब से मेरे साथ यह दुर्घटना घटित हुई है ,
मेरी तो खोपड़ी ख़राब हो गयी है !
सारी चोकड़ी भूल गया हूँ ,
मेरी तो सारी हेकड़ी निकल गयी है !
सर की टेकरी और कमर कुबड़ी हो गयी है !
जब भी सोचता हुँ यह दुर्घटना घटित हो गयी है !
तो लगता है माँ बाप के कहने में आ गया ,
मेरी शादी का प्रस्ताव मेरे मन को भा गया !

जवानी का जोश था होश न हवास था ,
मन में फ़ुट रहे थे लड्डू कन्या को देखते ही हो गए लट्टू !
ऐसे में जीजा ने भी बहका दिया ,
साले मौका मत चुक करदे हाँ वरना उमर भर पछतायेगा !
कुंवारा ही रह जाएगा !
शादी हो जायेगी तो मौज मस्ती रहेगी ,
साथ में सुंदर पत्तनी रहेगी तेरी भी गृहस्थी बसेगी !
और सारी दुनिया समझ में आ जायेगी ,
नोन तेल मिर्च का भावः याद हो जाएगा !
में जीजा का आखरी वाक्य समझ न पाया !

और मै भी जान भूझकर ही दुर्घटना ग्रस्त हो गया ,
शादी के बंधन में बँध गया !
आजाद परिंदा गुलामी में कैद हो गया !
मगर मुझे क्या मालूम था की अच्छी खासी ,
हंसती खेलती जिंदगी तबाह हो जायेगी !
चार दिन की चाँदनी फ़िर वही अँधेरी रात आएगी ,
जवानी की सारी मस्ती उतर जायेगी !
जब से पत्नी के साथ सात फेरे लगे है ,
निन्नानवे के फेरे में हूँ !

काश ये दुर्धटना मेरे साथ घटित नही होती तो ,
मेरी मन मर्जी का राजा होता चैन से खाता चैन से सोता !
मगर जब से दुर्घटना ग्रस्त हुआ हूँ ,
मेरा तो तेल ही निकल गया है !
कोलू का बैल हो गया हूँ ,
मगर निकल नही पाता हूँ !
निकलने की कितनी ही कोशिश करता हूँ ,
और उतना ही फस जाता हूँ !

एक नही दो नही तीन है ,
तीसरी बार माँ के कहने पे फंस गया !
नस बंदी से डर गया ,
दसो दिशाए बंद है !
बीबी सहित चार है ,
साथ में माँ बाप बीमार है !
आस पास रिश्तेदार है ऊपर से महंगाई की मार है ,
नीचे उधार बेकारी की मार है !
बड़ी लाचारी है खीचना गृह्थी की गाड़ी है !

जिस पर श्रीमती जी फरमाती है ,
शादी की सालगिरह पर मेरे लिए क्यो नही लाते जी साडी हो !
लोग अपनी बीबी बच्चों के लिए क्या क्या नही करते है !
कही से भी लाते है अच्छा खिलाते है ,
पिलाते है पहिनाते ओडाते है !
आप जो है की कुछ नही कर पाते है !
आप से जब भी कुछ कहते है तो अपने हाथ ,
खडेकर खड़े हो जाते है सरकार !
अपनी सरकार की तरह निकम्मापन दिखाते हो ,
आपके साथ शादी करके ही पछता रही हूँ !
मैने कहा श्रीमती जी शादी एक ऐसा लड्डू जो खाए ,
वो भी पछताए जो नही खाए वो भी पछताए !

हम तो खाकर पछता रहे है ,
इससे तो नही खा कर पछताना ही अच्छा है !
इस लिए अपने बरसो के अनुभव पे कह रहा हूँ ,
ओ कुंवारों मेरे राज दुलारो देश के निहालो !
इस लड्डू को नही खाकर पछताना ही अच्छा है ,
शादी शुदा होने से तो आजीवन कुवारे रहना अच्छा है !
अटल जी की तरह !
इस लिए मेरे देश के भविष्य सावधानी हटी की दुर्घटना घटी !
इसलिए अपने विवेक का स्टेयरिंग थाम कर रखिये ,
दिल का गियर दिमाग का ब्रेक ठीक ठाक रखिये !
दुर्घटना स्थल के रस्ते पर अपने मन की गाड़ी ,
को जाने से बचाइए !
आइये कुंवारों की महफ़िल सजाइए और मौज मनाइये !

जर जोरू और जमीन

जर जोरू और जमीन ने कइयो को लड़ा दिया है !
जर जोरू न जमीन रही सब कुछ लुटा दिया है !!

अदालतों में घूम घूम कर सारा वक्त गवा दिया है !
हाथ कुछ नही रहा कइयो को दुश्मन बना लिया है !!

जर जब तक रही जोर रहा जोरू ने दीवाना बना दिया है !
जमी जब तक रही मालिक रहा फ़िर भिकारी बना दिया है !!

जर किस के पास रही है जोरू पर भरोसा ही क्यो किया !
ये जमीन किसके साथ गई है इसने आदमी को खुदमे मिलाया !!

जर जिसने महनत से कमाई है और जोरू को अपना बना लिया !
जमी बस सर छुपाने को चाही है उसने खुशियों को पा लिया !!

आमिरी गरीबी जो भी रही हो जो फकीराना अंदाज में जिया है !
जर जोरू और जमीन से मोह न किया है उसने जिंदगी को मौज से जिया है !!

कलयुग

दम तोड़ती संवेदनाये संवेदना शुन्य होते लोग !
पत्थर दिल होते इंसान टूटते रिश्ते बिखरते परिवार !

भौतिक सुखो की दौड़ में बहु बेटे बोझ बनते माँ बाप !
निराश्रित होता बुडापा उनका घर उनकी जमीं उनकी संपात्ति ,
मगर विपत्ति से झुझते माँ बाप !
उपेक्छा अकेला पन झेलता बुडापा ,
वृधाश्रम में बड़ती संख्या ,
क्या यही है हमारी संस्कृति सभ्यता !

खुलापन प्रगति की दौड़ ,
क्या यही कहती है हमारी गीता कुरान ,
बाइबिल उपनिषद वेद पुराण !
सेवा सद्भाव को डस रहे है स्वार्थ के भुजंग ,
सहिष्णुता सोहार्द दया करुना अश्को को सुखा रही है !
द्वेष इर्शया की तपन होटों की मुस्कान ,
आँखों की खुशी चहरे की चमक छीन ले गयी है !

कुंठा हीनता प्रति स्पर्धा की घुटन ,
फ़िर भी अपने आप को इंसान कहते है !
इस दुनिया में अर्थवादी भौतिकवादी ,
सत्तावादी ऐशो आराम भोगी लोभी सभी लोग !
क्या यही है इस कलयुग का गुना भाग घटाव योग !

क्या हिसाब करे

क्या पड़े और क्या लिखे ,
जब दिल की किताब ही कोरी है !
जुबाँ पर प्यार के दो बोल नही है ,
प्यार की परिभाषा ही हारी हारी है !

आतंक के बोल आतंक के मोल है ,
आतंक के सोल है !
आतंक के बाजार में आतंक का पलड़ा भारी है !
साथ में मौत के सौदागर हथियार के व्यापारी है !

शब्दों के अर्थ बदले बदले से है ,
सभी को अर्थ दौलत से यारी है !
जिधर देखो उधर अर्थ के लिए मारा मारी है !
चेहरों पर कुटिलता हाथो में स्वार्थ की कटार है !
बनते बिगड़ते सूत्र हो गए है ,
सभी सवालों से घीरे है उत्तर किसी के पास नही है !

कैसे किस से क्या हिसाब करे ,
समीकरणों पे चलती दुनिया सारी है!
कलम की नोंक बोठरा सी गयी है ,
साहित्य की स्याही भी सुखी सुखी है !
कलमकारों को भी शोहरत इज्जत प्यारी है !
कैसे सर्जन श्रृंगार हो इस धारा का ,
जब हर तरफ़ विघटन विधवँस की बिखरी चिंगारी है !

Wednesday, October 22, 2008

निवेदन

ओपन ख़ाने नही देता है ,
क्लोज सोने नही देता है !
सुबह आ गया तो शाम ,
होने नही देता है !
इस चक्रवियु को अभी तक कोई भेद नही पाया है !

लाखो के वारे न्यारे हो जायेंगे !
इसी उधेड़बुन में जो इसमे घुस गया ,
बहार निकल नही पाया है !
दिमाग और धन दोनो गवाया है !
हर दिन तर्क कुतर्क लगाकर ,
अपना दिमाग खपाया है !

अपना गणित जमता है ,
कभी खुल्ले कभी जोड़ी लगाता है !
नही आने पर एक अंक से चुक गए ,
इसी अफ़सोस में कुछ देर पछताता है !
अगले दिन आने की उम्मीद में फिर फंस जाता है !

मैने तो अभी तक अच्छे अच्छे को ,
इसमे बरबाद होते देखा है !
किसी किसी को तो घर के बर्तन बेंचकर ,
सट्टा लगाते देखा है !
स्थानीय खाईवाल को पुलिस के डंडे खाते देखा है !

फीर भी सट्टा खाने से बाज नही आता है ,
अपने ही दोस्त मित्र गाँव वालो को रोज रोज फंसाता है !
हर दिन हजारो में इकठ्ठा करके ,
आपने ही गाँव का धन बहार भिजवाता है !

माना की ये एक खेल है अंको का मेल है ,
मिंडी से नौका तक की रेल है !
करोड़ो खिलाडियों को हर दिन खिलाता है !
मगर मेरे देखते देखते आज तक कोई ,
धनपति नही बन पाया है !
अगर सटोरिये लखपति बन गए होते तो ,
इससे चलने वाला कटोरा लेकर भीख मांग रहा होता !
और सट्टा कभी का बंद हो गया होता !

दोस्त ऐसा नही है !
उसके तो करोड़ो के वारे न्यारे हो गए है ,
मस्ती के गाने है खुशियों के तराने है !
मगर हमारे कई परिवार के छिन गए खाने है !
आपके दो दो चार चार दस दस बीस बीस ,
रुपयों के गठ बंधन से ऐशो आराम फरमाता है !
मौखिक आदेशों और निर्देशों से ही अपना प्रशाशन चलाता है !

उसके आगे हमारा प्रसाशन भी कुछ नही कर पाता है ,
वह तो सरकार को भी ठेंगा दिखता है !
और दिखा रहा है !
और वर्षों से अपनी स्वतन्त्र स्थाई सरकार चला रहा है !
वह तो अपने अंको के जादू से ,
अपने करोड़ो समर्थको से हर दिन ,
पर्ची डलवाकर आपना समर्थन जुटा रहा है !

करोडो को कंगाल पति बनाकर ,
ख़ुद को करोड़पति बना रहा है !
इस लिए ही तो कहता हूँ यारो दोस्तों ,
इस चक्रवियु में कभी मत फँसना !
अपनी हंसती खेलती जिंदगी को तबाह ,
होने से बचाए रखना !
और जो फंस गए है उन्हे भी इसमे से ,
निकलने की कोशिश करते रहना !
यही निवेदन यही मेरा कहना !

सूरज के प्रश्न

ये जिंदगी गमों का सागर है ,
खुशियों का सरोवर कैसे बने !

निराशाओं के अंधेरे में ,
आशा की किरण जगे तो कैसे जगे !

नागों ने डस लिया है कलियों को ,
खुशियों के सुमन कैसे खिले !

जब सारे चमन में नागफनी उग आए हो ,
गुलाब खिले तो कैसे खिले !



जंहा बदले और नफरत के बीज हो ,
वहाँ नेह का कमल खिले तो कैसे खिले !

काली गहरी धुंध छाई हो आसमान पे ,
वंहाँ मोहब्बत की खुशबू बहे तो कैसे बहे !

उम्मीदों की रौशनी कहीं नजर आती नही ,
अंधेरो की बस्ती में सपन सजे तो कैसे सजे !

सूरज के प्रश्न है ये कुछ अटपटे उलझे ,
इंनके उत्तर मिले तो कहाँ से कैसे मिले !

मेरा भारत महान

खास लोगों की मुट्ठियों में कैद है ,
आम लोगों की तकदीर !
मेरा भारत महान की ,
क्या यही है तस्वीर !
चाँद आकाओ के हाथ में है ,
मेरे महान देश की कमान !
क्या ये देश को ले जाते है सही मुकाम !

मुट्ठी भर हाई कमानों ने थाम रखी है ,
देश के सारे नेताऒ की लगाम !
क्या मेरे देश के ऐसे नेता कह सकते है ,
मेरे देश का लोकतंत्र है सही मुकाम !

महलों में रहने वाले एयर कंडिशनर कमरों में ,
बैठकर गरीबी हटाने की बात करते है !
और गरीब फुटपाथ पे पड़े पड़े भूख से मर जाते है ,
ठंडी और लू में गरीब यूँ ही हट जाते है !
क्या कह सकते है मेरा भारत है महान !

जहा पिच्यासी करोड़ बेहाल स्थिति में है ,
क्या यही है मेरे देश की आन और शान !
देश के कर्णधार अपने सवार्थ के लिए ,
तोड़ते कानून नियम संविधान !
सत्ता पर काबिज होते ही हो जाते है बे लगाम !
देश जाए रसातल में जनता जाए भाड़ में ,
ये बनते सुधारते है अपने दाम और काम !

गाँधी जी और अम्बेड्कर की आत्माए ,
अगर कहीँ जिन्दा होती !
मेरे देश की स्थिति देख वो भी रोती !
मेरे देश के लोग भी है बड़े महान !
फ़िर भी मेरा देश आगे बड़ रहा है ,
चल रहा है प्रगति कर रहा है !
दुश्मनों से लड़ रहा है ,
लगता है सब भगवान् भरोसे ही चल रहा है !

यदि ये सब कुछ उल्टा पुल्टा न होकर ,
सब कुछ ठीक ठाक होता तो !
आज मेरा देश विश्व का सिरमौर होता ,
मै ही नही कहता मेरा भारत महान !
सारा विश्व कहता भारत है महान !

अब भी कुछ नही बिगड़ा है वक्त है ,
बस आवश्यकता है द्रण इच्छा शक्ति की संकल्प की !
कर सकते है भारत का नव निर्माण ,
आवश्यकता है चन्द देश प्रेमियों की !
मुट्ठी भर क्रांतिकारियों की आम लोगो की जाग्रति की ,
फिर गर्व से कह सकते है !
मेरा भारत है महान !!

क्या किया इंसान तुने

ये क्या किया इंसान तुने -२ ,
जो पाले कांटे तेरे दामन में !
फूलो सी जिंदगी मिली है ,
खुशबू नही तेरे आंगन में !

किस दौड़ में शामिल हुआ है ,
जो फुर्सत ही नही है पल की !
जो ख़ीँच गयी है फ़िक्र की लकीरे ,
नजर आती तेरे आँगन में !

वो छुटा माँटी का ओटला घर की दहरी ,
खुला खुला सा आंगन घर की कचहरी !
मिली दर दर की ठोकरे फांके फजिते ,
चल चल पड़ गए छाले तेरे पाँव में !

ये कैसा ताना बाना बुना है ,
जो हर तरफ़ जाल से बिखरे हुए !
जिसमे मन का पंछी ऐसे फंसा है ,
जो चहका नही है मन भवन में !

ये कैसा घोला है जहर हवा में ,
जो खुशियाँ बरसती नही है सावन में !
वो मस्तियों की चुल बुलाहट नही है ,
सब रंग बेरंग हुए है बसन्ती फागन के !

होठो पे मुस्कान नही है ,
आंख़ो में नही है खुशी ,
गम ही गम है मन की आंखे बुझी बुझी सी !
बहारे भी तो गुमसुम गुमसुम सी है ,
पतझर सा लगा है सुख चैन तेरे आंगन में !

Tuesday, October 21, 2008

देश का अंक गणित

हजार चोरों में एक साहूकार हो तो ,
क्या क्या कुछ कर पायेगा !
जब सारे आसमान में छेद हो गए तो ,
कहाँ कहाँ ठेगले लगायेगा !
जब साडी सड़क ही खड्डे से पटी है ,
कौन कौन से गड्डे भर पायेगा !

हर आदमी जख्मी हो कर बैठा है ,
कौन किस के जख्म भरेगा !
कौन किसके लिए जख्म भरेगा ,
कौन किसके लिए मरहम बनेगा !

करता है कोई भरता है कोई ,
करता है मुंच वाला पकड़ता जाता है दाड़ी वाला !
मगर मुछ्मुन्डो के हुजूम में ,
कौन किसी की कैसे पहचान करेगा !
जब चोर सिपाही हो जाए मौसेरे भाई ,
तब कौन किसको पकडेगा !
और जब एक ही कुर्सी के हो जाए अनेको खसम ,
तो कुर्सी का चरित्र भ्रष्ट्र होने से कैसे बचेगा !

जब शकुनियों की जमात की जमात हो ,
उंनके लिए कौन तो युधिष्टिर और कौन कौन दुर्योधन बनेगा !
और अर्जुन का तो दूर दूर तक पता ही नही है !
कही भूले से श्री कृष्ण इस जमीं पे अवतरित हो गए ,
तो किसके रथ के सारथि बनेंगे !
कलयुग में रोज रोज के घर घर में हो रहे ,
महाभारत के लिए कौन कौन धर्म युद्ध लडेगा !
गीता ज्ञान कौन कहाँ किस को सुनाएगा !

जहा पितामह जैसे ही सत्ता कुर्सी के लोभी हो ,
वहा राज देश के लिए कौन सर्वर्स त्याग करेगा !
आँखों से देखते हुए भी अपने पुत्रो की तरफ़ से ,
उंनके पिता धत्राष्ट्र हो गए है !
जिनके गली गली में घूमते कोरवो से लड़ने के लिए ,
मजदूर की तरह हुए द्रोन कहाँ से पांडव तैयार करेगा !
गली गली में दुशाशन हो गए है !
कब कहा किस का चीर हरण हो जाए तो ,
अकेला कृष्ण कहाँ कहाँ चीर बडाने को खड़ा रहे !
और जहा देखो वहा भीक मांगो की भीड़ लगी है ,
कौन दान वीर कर्ण बनेगा !

एक साधू हजार सैतान ,
एक काजी हजार कफीर !
धर्म भी कब तक दम भरेगा !
हजारो गद्दारों में एक देश भक्त ,
कब तक देश भक्क्ति का चराग रोशन रखेगा !
अपनी अपनी दाड़ी की आग बुझाने में सब लगे है ,
देश की आग बुझाने को कौन अपने हाथ जलाएगा !
ऐसे देश की समस्याओ को उपचार कैसे हो पायेगा !

जो जमीन पचास बरस पहले ३० करोड़ के लिए थी ,
उस पर सो करोड़ हो गए है !
जन संख्या व़द्धी ने सारी व्यवस्था को ठेंगा दिखा दिया है !
चाहे प्रधान मंत्री हजार माथे का हो जाए ,
क्या खाख व्यवस्था करेगा !
एक की जगह हजार है जहाँ देखो वहा कतार है ,
एक अनार हजार बीमार है !
हर आदमी सरकार के भरोसे बैठा है ,
जबकि सरकार ख़ुद आनेको बैसाख़ीयो पर खड़ी है !
क्या किसी समस्या का उपचार हो पायेगा !

भगवान् स्वयं भी जमीन पर उतर आए तो ,
यह सब कुछ देख कर घबराकर मरने के लिए ,
चुल्लू भर पानी ढुँडता फिरेगा !
तो वह भी उससे नही मिलेगा !!

पिता का ता़स

जब भी उसकी शादी की बात उठती है ,
उसके पिताजी के सामने एक ही प्रश्न आ खड़ा होता है !

ये बेरोजगार नालायक निकम्मा बीबी को क्या ख़िलायेगा ,
क्या पहिनायेगा क्या ओडायेगा !
ख़ुद का पेट तो भर नही पा रहा है ,
क्या उसकी बड़ती हुई मांग की पूर्ति कर पायेगा !

मगर बेटे का कहना है की मेरी शादी करके तो देखो ,
बीबी को मलाई के लड्डू खिलाऊंगा !
नई नई साडिया पहिनाऊँगा ,
घुमाने फिरने ले जाऊंगा सिनेमा दिखाऊंगा !
नगर में अपनी भी उधारी चलती है ,
अपनी भी कोई साख है !

उस की मांग में भरूँगा,
तो उसकी बड़ती हुई मांग की पूर्ति भी में करूँगा !
जब खर्चे की मार पड़ेगी तो ख़ुद ,
कमाने निकल जाऊंगा !
आपनी ग्रहस्ती की गाड़ी ख़ुद चलाऊंगा !
माँ कसम पिताजी आप को नही सताऊंगा !

मगर पिताजी को शक है की ,
मेरी साख पर बेटे की साख है !
पिताजी का कहना है की इतनी बड़ती हुई,
उधारी कब तक चुकाऊंगा !
इस लिए मैने भी ठान रखा है ,
जब तक ये आपने पैरो पे खड़ा नही हो जाएगा ,
इससे घोडी पे नही चड़ने दूंगा !

एक बेरोजगार निक्कमे की शादी नही राचाऊँगा ,
चाहे उमर भर कुंवारा रह जाए !
मैने यदि शादी करवादी तो ,
अभी तीन है तीन से चार चार से छः हो जायेंगे !
इस महंगाई के दौर में बेचारी अकेली पेंशन में छः छः ,
का खर्चा कैसे चलाएंगे !
में तो बेमोत मारा जाऊंगा !

अतः इसकी शादी की बात मेरे सामने मत छेडिये बस रहने दीजिये ,
पहले इसके रोजगार की व्यवस्था कीजिये ,
फ़िर आकर इसकी शादी की सलाह दीजिये !
कृपया मेरी दुखती रग पे हाथ मत रखा कीजिये !!

सच

क्यों नही है इस जहाँ में सच की बातें सच की ताकत !
सच तो सूली पर चडा है झूठ की होती है इबादत !!

क्या हो गया इंसान तुझको इंसानियत तुझसे नदारत !
झूठ की वकालत करता है, झूट की बड़ती है ताकत !!

स्वार्थ की भाषाओ में चलती है झूठ की ही इबारत !
न्याय भी साक्षों पे चलता है साक्ष से सच होता नदारत !!

सच से निकलकर झूट झूट के हाथी पे बैठ है बन महावत !
हर झूट को सच साबित करे हम इतनी हासिल है महारत !!

संस्कृति तो धूमिल हो रही है सच का दर्पण था ये भारत !
किताबो में बंद हो गयी है रीती निति की कहावत !!

हर दिन पड़ते और सुनते है गीता रामायण भागवत !
क्या देती है हमको ये इजाजत जो करते है हम सच से बगावत !!

सच पूछो तो इस जहाँ में सच में यही हकीकत !
ये सूरज किसी ने सच ही कहा है सच की राह में है मुसीबत !!

वो मरना नही है अमर होना है जिसने की है सच की इबादत !
जिसने सच का थामा है दामन उसकी रब भी करता है हिफाजत !!

इंसानियत का नाता

इस छोटी सी जिंदगी में नफरत ना पालो दिल में ,
दिल को बना लो प्यार मोहब्बत का आशियाना !

आज है यहाँ तो कल होगा कहाँ ठिकाना ,
पल का नही भरोसा इन् राहों पे कब है आना !

ये जिंदगी एक सफर है चलता है आना जाना ,
आते जाते यहाँ मुसाफिर दिल किसी का नही दुखाना !

हो गम की ठोकर तो फिरभी न लडखडाना ,
मुस्कुराहटोँ की ठोकरों से मुश्किलें युही हटाना !

निराशा रोके राहे नही पीछे कदम हटाना ,
उम्मीदों के होसलों पे आगे कदम बडाना !

मोहब्बत तो मजा है ये खुशियों का है खजाना ,
महकेगी जिंदगी ये जो मोहब्बत का फूल खिलाना !

हर दिन होती नयी सुबह तो बिता कल काहे दोहराना ,
आ चला चल ओ मुसाफिर मंजिल तुझे जो पाना !

जाती धर्म मजहब के नाम पर किसी से रिश्ता नही बनना ,
हम इन्सान है सभी तो इंसानियत का नाता सबसे हमें निभाना !

नेताजी बन जाइये

ग़दर, माँ तुझै सलाम, २३ मार्च १९३१ शहीद,
टी लिजेंड ऑफ़ भगतसिंह,
जैसी फिल्म देख देख कर हमे भी देश भक्ति उमड़ आयी !

हमारे तन बदन में देशभक्ति समां गयी ,
आज कल देश भक्ति दिखाई जाती है होती नही !
हम भी देश भक्ति दिखाने के चक्कर में ,
खादी परिधान पहन कर स्वतंत्रता दिवस समाहरोह में जा पहुचे !

हम जैसे ही आयोजन स्थल द्वार पे पहुचे ,
हमारे परम मित्र हमारे सामने आ गए !
और बोले आइये आइये नेता जी ,
वाकई जाच रहे हो बिल्कुल नेता लग रहे हो !

हम घबराए सकपकाए और सोचने लगे ,
मित्र ने हमें नेताजी कहकर हमारा सम्मान बढाया ,
या गली दी, समझ ना पाए !

हम कुछ कहते संभलते इससे पहले ही मित्र,
पत्रकार मुद्रा में आ गए !
और हम पर पर्श्नों की झडी लगा दी ,
और बोले अच्छा तो आप भी शामिल होने जा रहे है !
देश को बरबाद करने में किस टोल में हो ,
संविधान के साथ कौन सा बलात्कार करोगे ,
आकेले रहोगे या सामूहिक करोगे !

कौन सा कानून तोड़ोगे किस की गर्दन मरोडोगे ,
किसी गिरोह में शामिल होगे या अकेले रहोगे !
या ख़ुद अपना गिरोह बनाओगे ,
दलालों को कन्डीयों को घोटालियो को या दल बद्लुओ को ,
किस किस को शामिल करोगे !

किस प्रान्त में भ्रष्टाचार की घांस उगाओगे ,
और किस प्रांत में आग लगाओगे !
आम कांड करोगे या दलाली खाओगे ,
घपला करोगे या घोटाला बड़ा या छोटा !
सभी ने तो करोड़ो में किए है ,
आप इन् से कम रहोगे या आगे निकल जाओगे !

आप बुरा न माने तो एक बात पुछुँ ,
आप में शर्म लाज तो रहेगी नही !
हमारे काम के भी ना रहोगे ,
आप अपने काम और दाम बनाओगे !
आदमी जाती से तो बहार ही निकल जाओगे ,
वर्तमान में पलित और भविष्य में भूत हो जाओगे !

क्या यूरिया खाकर घांस पचाओगे ,
या शक्कर की चासनी में डुप्कीयाँ लगाओगे !
या नोटों का बिस्तर बिछा कर सो जाओगे ,
या पनडुब्बी में बैठ कर सागर की सैर कर आओगे !
या बोफोर्स तोप पर बैठ कारगिल की चोटी पर चढ़ जाओगे ,
हाथ किसी के न आओगे !

जैसे तैसे मित्र से पीछा छुड़ाकर आयोजन स्थल ,
के द्वार से घर आ गए !
हमें शीघृ आता देख श्रीमती घबराई ,
और पूछा इतनी जल्दी !
हमने कहा इस खादी परिधान में देख ,
मित्र ने हमें आदमी से जाने क्या क्या बना दिया !
और नेताजी कह कह कर गलियाँ दी !

सो श्रीमती जी टपक से बोली ,
तो बन जाइये ना नेता जी !
शायद हमारे भाग्योदय का समय आ गया है ,
हमारे सारे दुःख दूर हो जायेंगे !
हम सभी सुख राम हो जायेंगे !
हमारी आने वाली पीडियाँ तर जाएँगी ,
पीड़ी तो पीड़ी हमारे पुरखे भी तर जायेंगे !
खुशी से नगाडे बजायेंगे !

देखो लालू को करोड़ो का चारा खाकर भी ,
छूटपल्ले घूम रहा है !
रोज अखबार टी वी में आ रहा है ,
और राष्ट्रीय राजनीती पे छा रहा है !
नरसिंहा का क्या बिगड़ गया ,
निर्दोश हो कर स्वर्ग ही चला गया !
जयललीता का कोई कुछ नही बिगाड़ सका ,
मुख्य मंत्री बनकर सरकार चला रही है !
सुखराम सुखमय हवाला के सारे दोष दोष मुक्क्त हो गए ,
पनडुब्बी तोप दलाली जाने कहा खो गए !

में भी आपके मन मष्तिष्क की राबडी बनना चाहती हूँ ,
माय डीयर हसबैंड आप मेरे लालू बन जाइये !
कुछ दिन के लिए जेल जाने को तैयार हो जाइये !
किसी राज्य का सी ऍम मुझे भी बनने दीजिये ,
प्रान्त में भ्रष्टाचार की हरी हरी घास उगाकर ,
हमें भी चरने दीजिये !
आप भी सारे राज्य को खूब चरना ,
और दिल्ली में जाकर पचाना !
और सारे देश को चरना और संसद में जाकर डकारना !
प्लीज माय डीयर होनहार हसबैँड ,नेताजी बन जाइये बस !!

सफर

जाना है कही दूर हमें , जिंदगी के इस सफर में !

न पता है पास अपने , न ख़बर है उस डगर की !
न पता है वक्त का भी, न किसी को ये ख़बर है ! !

ना है हमें आकेले ही , ये खूबी है इस सफर की !
न कोई समान साथ होगा, न टिकट है उस सफर की ! !

ना के हमें बस यही, वापसी नही है उस सफर की !
उस सफर को मौत कहते है, ये सच्चाई उस सफर की ! !

आओ मेरे साँथ

जागो जागो नौजवानों जागो ओ जवानियों ,
भगत शेखर से जवानियों दुर्गा लक्ष्मी भवनियो !

तुम्हे क्रांति का शंख नाद फुकना है ,
दशो दिशाए तुम्हे आवाज दे रही है !
तुम्हे पुकारता है सारा जहान ,
ये धरती आसमान !

आगे आगे मै चलता हूँ आओ आओ मेरे साँथ ,
इंसानियत को डस रहे है हैवानियत के नाग !
ऐसे नागो के फन तुम्हे ही कुचलना है ,
आगे आगे में चलता हूँ आओ आओ मेरे साँथ !

राकछसी इरादे लील रहे है ,
बेगुनाहों की लाश !
यहाँ वहा लुट जाती है अबलाओं की लाज !
ऐसे राकछसी इरादों की बना आ लाश !

सुरसा सी सांसे निगल रही है ,
नव वधु की साँस !
ऐसी सुरसा सी सांसो से हो जाए दो दो हाथ !
भस्मासुर उग रहे है गाजर घास की तरह ,
इन्हे भस्म करना है दिखादो तांडव नाच !

शक्नुनियो ने बिछा आगे है आगे की बिछात ,
इन् के साथ साथ करदो गे कोरवो का नाश !
फिर से दोहरादों महाभारत इतिहास ,
कोई सुदर्शन चक्रधारी कोई अर्जुन कोई भीम बन जाए आज !

जो ईमान खा रहे लंच डिनर के साँथ ,
सचाई घोल पि रहे मय के जमो के साँथ !
रंगरलिया मन रहे है आजादी के साँथ ,
दरबान बना खड़ा लोकतंत्र वंहाँ आज !
ऐसे गद्दारों मक्कारों को सिखा दो सबक आज !

मानव बना है बम हाथ पे हाथ धरे बैठे हुए हम ,
फिर भी कहते नही थकते है शान्ति है शान्ति है !
ऐसी क्या मजबूरी है,
ऐसी मजबूरी से हो जाए दो दो हाथ !
आगे आगे में चलता हूँ आओ आओ मेरे साँथ !

लीक से हटकर

लीक से हटकर कुछ करने के लिए ,
हिम्मत चाहिए कुछ करदिखाने का जस्बा चाहिए !
ये जमाना क्या कहेगा इस फितरत से ,
दिमाग तो मुक्ति चाहिए !

रस्म रिवाजो की जकडन में कब तक जकडे़ रहोगे ,
रुडियो की उलझनों से निकलने के लिए ,
विचारो की क्रांति चाहिए !

यदि परिवर्तन चाहते हो तो बदलाव का तूफान उठाओ ,
नया कुछ एसा कर दिखाओ की मिसाल बन जाए ,
अरे मशाल थामने के लिए कोई न कोई हाथ चाहिए !

कोरे खोखले झूठे दिखावो को आपनी शान समझते हो ,
जो संविधान और कानून के ख़िलाफ़ है ,
उससे अपने समाज का मान सम्मान समझते हो !

अपने मन के बनाये नियम कानूनों के पालन में ,
सारे सिधांत संविधान धरे रह जाते है !
जो किसी किताब में न लिखे हो ,
उन्हे आम समाज के सिधांत नियम कह कर अपनाए जाते हो !
और संविधान प्रदत्त कानूनों अपने स्वार्थ में एक झटके में तोड़ जाते हो !

और लीक से हटकर कुछ करने का मौका जब भी आता है ,
तो परिवार जाती समाज की बनाईं अंधी सुरंगों में ,
घुस जाते हो और बहार निकलने की हिम्मत ही नही कर पाते हो !
अवस्थाओ को कब तक कोसते रहोगे ,
कहने बकने बहस से कुछ नही बदल सकता है !

सच में अगर बदलाव चाहते हो तो ,
ख़ुद को अपने से ही शुरू करना होगा !
एक से अनेक होंगे अपने पीछे और भी होंगे ,
पगडन्डीयों ख़ुद बा ख़ुद बनती जायेगी उन् पर पथिक आते जाते रहेंगे !

अवस्था बदलने के लिए मस्तिशको का आनुस्थापट होना चाहिए ,
आकेला कुछ नही कर सकता इस हताशा से बाहर निकलना चाहिए !
इतिहास के पन्ने पलट कर देखो ,
जो कुछ भी हुआ है किसी ने अकेले ही शुरू किया है !
लोग साथ होते गए कारवाँ बनता गया !
अगर बनाना है तो आपने स्वार्थ और सुख की कुर्बानी होना चाहिए !

आओ मेर्रे साथ मुझे आप का साथ चाहिए !!
लीक से हटकर कुछ करने के लिए...........

चिराग रोशन रहो

चिराग रोशन रहो -२ ,
लगता है सुबह हुई नही !

सूरज तो ऊगा है मगर ,
धुंध अभी छ्टीँ नही !

लगता है दोपहरी आ गयी ,
नींद अभी खुली नही !

साँझ ढलने को है अभी -२ ,
ये दुनिया अभी जगी नही !

अंधेरो में भटके हुए है लोग ,
रौशनी अभी मिली नही !

जिस राह पे चलना है इन्हे ,
वो राह अभी मिली नही !

सब कुछ तो है मगर ,
खुशी इन्हे मिली नही !

सभी को एक ठोर की तलाश है ,
वो मंजिल अभी मिली नही !

किस राह चल पड़ी है सभ्यता जहान में

किस राह चल पड़ी है सभ्यता जहान में !
ये ज़मी ये असमा हुआ लहुलुहान है !!

हर मन अशांत है शान्ति का संदेश छुप गया ,
हिंसा खुले आम भाईचारा मर गया !
इंसान ही इंसान को अब तो डस रहा ,
इंसानियत पे कही आबतो छा गया कोहरा !
ये कैसी हवा चल पड़ी है इस जहान में !!
ये जमी ..............

जाती पंथो में बँट चला है काफिला ,
और मजहब का चल पड़ा है सिल सिला !
धर्मे की ध्वजा लिए उन्माद छा रहा ,
धर्म की दूकान से विध्वंस चल पड़ा !
ये कहाँ लिखा है गीता कुरान में !!
ये जमी.................

भ़स्टाचार खुलेआम और चरित्र गिर गया ,
अस्मते हुई नीलाम और शरीर बिक रहा !
ईमान के तराजू पर बईमान तुल रहा ,
सत्य की कमान से असत्य का तीर चल रहा !
ये उन्नति हुई यहाँ औछे विधान में !!
ये जमी.................

मजहबी जूनून कैसा है जो रक्त पी रहा ,
निर्दोष इंसान को तो ये निगल रहा !
धर्म धर्म के खिलाफ जहर उगल रहा ,
अदना आदमी ही ख़ुद को खुदा समझ रहा !
नफरत के बीज बो रहा इंसान ही इंसान में !!
ये जमी..............

आदमी बन्दूक की बारूद हो गया ,
हर तरफ़ से अब तो उठ रहा है धुआँ !
पानी और हवा में भी जहर घुल गया ,
अब तो आदमी भी रोजी रोटी से दूर हो रहा !
कैसे जीए अब कोई इस उजडे विहान में ,
ये जमी ये आसमा हुआ लहू लुहान है !
किस राह चल पड़ी है सभ्यता जहान में !!

मन का दिया

मेरे मन का दिया बुझ बुझ जाए रे !
गुथ गुथ मन की माटी रोज बनाऊँ मै !
ध्यान धरीं धरीं पकाऊँ मै !
संयम ने बल बल बाती रोज बनाऊँ मै !
उम्मीदों में भिगोइने भिगोइने रोज जलाऊँ मै !!

में खोया हुआ हूँ अपनों गैरों में ,
रिश्तो नातों में उलझा हुआ हूँ !
में जीवन की सच्ची राहों में भटका हुआ हूँ ,
वो जीवन की सच्ची राह दिखा दे !!

वो रौशनी मिले देख पाऊँ मै ,
ख़ुद को ही खुद में क्या !
ख़ुद ही में ख़ुद ही मै खोया हूँ ,
मै कौन हूँ मुझको बता दो !!

मै लालच की लहरों में बह बह जाऊँ ,
मोह माया की भवरों में कस कस जाऊँ !
आती है बुझाने नफरत की आंधी ,
कैसे बचाऊ मै मेरे मन का दिया !!

हर तरफ़ है अँधेरा छाया दौलत का कोहरा ,
कुछ आता नही है नजर सच झूठ की गलियों में !
टिमटिम टिमटिम टीमके मेरे मन का दिया ,
मेरे मन का दिया बुझ बुझ जाए रे !!

कभी तूफ़ान आते कभी झोके हवा के ,
मझदार में नैया कोई नही खिवैया !
डूब जाए ना मेरी नैया ,
ओ माझी तू ही पार लगा दे !!
मेरे मन का दिया बुझ बुझ जाए रे !

प्रार्थना

परमात्मा मेरी आत्मा में बसे हो तो ,
दर्शन दो मुझे मेरे रोम रोम में आ बसों !

वह शक्ति दो वह भक्ति दो वह बुद्धि दो !
तुम्हे जान सकूँ तुम्हे पहिचान सकूँ ,
तुम्हे देख पाऊ, वह द्रष्टि दो !!

मेरा रूप तू है तेरा रूप मै हूँ ,
तू मुझ मे मै तुझ में !
इस जीव जगत को बसाने वाला तू है ,
फ़िर ये कैसा मद भेद है !
ये मन भटके नही इससे भटकनो से निकल दे !!

किस मन्दिर में जाऊँ किस मूरत में पाऊँ !
हर सूरत में तू है कण कण में तू है !!
जीव जगत को चलाने वाला ही तू है ,
कहाँ कहाँ हो ये तो बता दो !!

में याचक नही मेरी कोई चाहत नही !
कुछ भी पाना नही ये सब कुछ तो है !
ये सुंदर सा तन ये निर्मल सा मन ,
तेरा दिया है इससे खोना नही है !
बस दया द्रष्टि तेरी बस तेरी कृपा हो !!

Monday, October 20, 2008

सबका मालिक एक

जिस दिल में बदले नफरत कोई रहता हो शैतान !
वो हिंदू ना रहा है ना रहा है वो मुसलमान !!

जहाँ बदले और नफरत का कोई रहता हो शैतान !
वहाँ रहीम रहा न रहा राम ना रहा कोई भगवान् !!

जहाँ प्यार मोहब्बत का सदा गूंजता है पैगाम !
वहीं रहीम रहते है वहीं रहते है वो राम !!

कहाँ खो गए रहीम कहाँ खो गए है राम !
जिनने प्यार मोहब्बत का सदा दिया है पैगाम !!

चाहे तासीर अलग -२ हो मगर सूरत तो एक है !
किस सूरत पे लिखा हिंदू किस सूरत पे मुसलमान !!

वो कैसा हुआ धर्म वो कैसा हुआ इस्लाम !
जो अपने ही नाम पे यहाँ लड़ रहा इंसान !!

अमन का देते है पैगाम जहा गीता और कुरान !
संग संग होती सुबह शाम जहाँ आरती और अजान !!

वहीं मजहब के नाम पर ही मौत के हवाले हुए सैकडो इंसान !
जो मन्दिर मज्जिद में बँट गया वो कैसा हुआ भगवान् !!

जिसने कभी बाँटा नही है नीर और बाँटी नही हवा !
जिसका एक ही सूरज और एक ही चाँद !!

जिसकी एक ये जमी और सारा ये आसमान !
जिनको दे दिए हमने ही अलग -२ नाम रहीम हो या राम !!

या कहो साईं राम जिसने सबका मालिक एक का दिया यंहाँ पैगाम !!

सरस्वती वन्दना

जयति -२ जय -२ जय माँ शारदे ,
शत शत वंदन अभिनन्दन !
माँ कोटि -२ नमन वंदे !! -२

ऐसी ज्योति जगादे मन में अज्ञान- का तम् हरले !
वीणा धारिणी हंस वाहिनी ज्ञान दायनी दुःख क्लेश हरले !
जयति.............................................................. वंदे !!

कटुता से जिव्हा अकुलाई वाणी में मधुर शब्द भर दे !
निज स्वार्थ तजे उपकार करे हम , हमारे एसे करम करदे !
जयति............................................................. वंदे !!

स्नेह का नीर बहादे दिल से छल दम्भ द्वेष हर ले !
भेद भाव सब दिल से हर ले जीवन में समता रस भर दे !
जयति............................................................. वंदे !!

धवल धवल निर्मल आंचल तेरा तेरे आंचल में सुख का बसेरा !
हर दिन हो खुशियों का सवेरा तेरी ममता हम पर कर दे !!
जयति......................................................... वंदे !!

कल कल नदिया गान करे झर झर निर्मल झरने बहे !
शीतल निर्मल पवन बहे हवा से विष हरण कर ले !
जयति........................................................ वंदे !!