क्या पड़े और क्या लिखे ,
जब दिल की किताब ही कोरी है !
जुबाँ पर प्यार के दो बोल नही है ,
प्यार की परिभाषा ही हारी हारी है !
आतंक के बोल आतंक के मोल है ,
आतंक के सोल है !
आतंक के बाजार में आतंक का पलड़ा भारी है !
साथ में मौत के सौदागर हथियार के व्यापारी है !
शब्दों के अर्थ बदले बदले से है ,
सभी को अर्थ दौलत से यारी है !
जिधर देखो उधर अर्थ के लिए मारा मारी है !
चेहरों पर कुटिलता हाथो में स्वार्थ की कटार है !
बनते बिगड़ते सूत्र हो गए है ,
सभी सवालों से घीरे है उत्तर किसी के पास नही है !
कैसे किस से क्या हिसाब करे ,
समीकरणों पे चलती दुनिया सारी है!
कलम की नोंक बोठरा सी गयी है ,
साहित्य की स्याही भी सुखी सुखी है !
कलमकारों को भी शोहरत इज्जत प्यारी है !
कैसे सर्जन श्रृंगार हो इस धारा का ,
जब हर तरफ़ विघटन विधवँस की बिखरी चिंगारी है !
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