क्यों नही है इस जहाँ में सच की बातें सच की ताकत !
सच तो सूली पर चडा है झूठ की होती है इबादत !!
क्या हो गया इंसान तुझको इंसानियत तुझसे नदारत !
झूठ की वकालत करता है, झूट की बड़ती है ताकत !!
स्वार्थ की भाषाओ में चलती है झूठ की ही इबारत !
न्याय भी साक्षों पे चलता है साक्ष से सच होता नदारत !!
सच से निकलकर झूट झूट के हाथी पे बैठ है बन महावत !
हर झूट को सच साबित करे हम इतनी हासिल है महारत !!
संस्कृति तो धूमिल हो रही है सच का दर्पण था ये भारत !
किताबो में बंद हो गयी है रीती निति की कहावत !!
हर दिन पड़ते और सुनते है गीता रामायण भागवत !
क्या देती है हमको ये इजाजत जो करते है हम सच से बगावत !!
सच पूछो तो इस जहाँ में सच में यही हकीकत !
ये सूरज किसी ने सच ही कहा है सच की राह में है मुसीबत !!
वो मरना नही है अमर होना है जिसने की है सच की इबादत !
जिसने सच का थामा है दामन उसकी रब भी करता है हिफाजत !!
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