किस राह चल पड़ी है सभ्यता जहान में !
ये ज़मी ये असमा हुआ लहुलुहान है !!
हर मन अशांत है शान्ति का संदेश छुप गया ,
हिंसा खुले आम भाईचारा मर गया !
इंसान ही इंसान को अब तो डस रहा ,
इंसानियत पे कही आबतो छा गया कोहरा !
ये कैसी हवा चल पड़ी है इस जहान में !!
ये जमी ..............
जाती पंथो में बँट चला है काफिला ,
और मजहब का चल पड़ा है सिल सिला !
धर्मे की ध्वजा लिए उन्माद छा रहा ,
धर्म की दूकान से विध्वंस चल पड़ा !
ये कहाँ लिखा है गीता कुरान में !!
ये जमी.................
भ़स्टाचार खुलेआम और चरित्र गिर गया ,
अस्मते हुई नीलाम और शरीर बिक रहा !
ईमान के तराजू पर बईमान तुल रहा ,
सत्य की कमान से असत्य का तीर चल रहा !
ये उन्नति हुई यहाँ औछे विधान में !!
ये जमी.................
मजहबी जूनून कैसा है जो रक्त पी रहा ,
निर्दोष इंसान को तो ये निगल रहा !
धर्म धर्म के खिलाफ जहर उगल रहा ,
अदना आदमी ही ख़ुद को खुदा समझ रहा !
नफरत के बीज बो रहा इंसान ही इंसान में !!
ये जमी..............
आदमी बन्दूक की बारूद हो गया ,
हर तरफ़ से अब तो उठ रहा है धुआँ !
पानी और हवा में भी जहर घुल गया ,
अब तो आदमी भी रोजी रोटी से दूर हो रहा !
कैसे जीए अब कोई इस उजडे विहान में ,
ये जमी ये आसमा हुआ लहू लुहान है !
किस राह चल पड़ी है सभ्यता जहान में !!
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