Thursday, October 23, 2008

शादी का लड्डू

लोग शादी की सालगिरह मानते है ,
मुझे बड़ा आश्चर्य होता है !
की वो इस दुर्घटना को क्यो नही भूल पाते है !
मुझे जब भी इस दुर्घटना का ख़याल आता है !
तो सर से पैर तक काँपने लगता हूँ ,
थके हुए बुडे़ बैल की तरह हाँपने लगता हूँ !
पलभर के लिए तो भयभीत हो जाता हूँ !
हक्के बक्के भूल जाता हूँ कुछ पल के लिए बेहोश हो जाता हूँ !

जब से मेरे साथ यह दुर्घटना घटित हुई है ,
मेरी तो खोपड़ी ख़राब हो गयी है !
सारी चोकड़ी भूल गया हूँ ,
मेरी तो सारी हेकड़ी निकल गयी है !
सर की टेकरी और कमर कुबड़ी हो गयी है !
जब भी सोचता हुँ यह दुर्घटना घटित हो गयी है !
तो लगता है माँ बाप के कहने में आ गया ,
मेरी शादी का प्रस्ताव मेरे मन को भा गया !

जवानी का जोश था होश न हवास था ,
मन में फ़ुट रहे थे लड्डू कन्या को देखते ही हो गए लट्टू !
ऐसे में जीजा ने भी बहका दिया ,
साले मौका मत चुक करदे हाँ वरना उमर भर पछतायेगा !
कुंवारा ही रह जाएगा !
शादी हो जायेगी तो मौज मस्ती रहेगी ,
साथ में सुंदर पत्तनी रहेगी तेरी भी गृहस्थी बसेगी !
और सारी दुनिया समझ में आ जायेगी ,
नोन तेल मिर्च का भावः याद हो जाएगा !
में जीजा का आखरी वाक्य समझ न पाया !

और मै भी जान भूझकर ही दुर्घटना ग्रस्त हो गया ,
शादी के बंधन में बँध गया !
आजाद परिंदा गुलामी में कैद हो गया !
मगर मुझे क्या मालूम था की अच्छी खासी ,
हंसती खेलती जिंदगी तबाह हो जायेगी !
चार दिन की चाँदनी फ़िर वही अँधेरी रात आएगी ,
जवानी की सारी मस्ती उतर जायेगी !
जब से पत्नी के साथ सात फेरे लगे है ,
निन्नानवे के फेरे में हूँ !

काश ये दुर्धटना मेरे साथ घटित नही होती तो ,
मेरी मन मर्जी का राजा होता चैन से खाता चैन से सोता !
मगर जब से दुर्घटना ग्रस्त हुआ हूँ ,
मेरा तो तेल ही निकल गया है !
कोलू का बैल हो गया हूँ ,
मगर निकल नही पाता हूँ !
निकलने की कितनी ही कोशिश करता हूँ ,
और उतना ही फस जाता हूँ !

एक नही दो नही तीन है ,
तीसरी बार माँ के कहने पे फंस गया !
नस बंदी से डर गया ,
दसो दिशाए बंद है !
बीबी सहित चार है ,
साथ में माँ बाप बीमार है !
आस पास रिश्तेदार है ऊपर से महंगाई की मार है ,
नीचे उधार बेकारी की मार है !
बड़ी लाचारी है खीचना गृह्थी की गाड़ी है !

जिस पर श्रीमती जी फरमाती है ,
शादी की सालगिरह पर मेरे लिए क्यो नही लाते जी साडी हो !
लोग अपनी बीबी बच्चों के लिए क्या क्या नही करते है !
कही से भी लाते है अच्छा खिलाते है ,
पिलाते है पहिनाते ओडाते है !
आप जो है की कुछ नही कर पाते है !
आप से जब भी कुछ कहते है तो अपने हाथ ,
खडेकर खड़े हो जाते है सरकार !
अपनी सरकार की तरह निकम्मापन दिखाते हो ,
आपके साथ शादी करके ही पछता रही हूँ !
मैने कहा श्रीमती जी शादी एक ऐसा लड्डू जो खाए ,
वो भी पछताए जो नही खाए वो भी पछताए !

हम तो खाकर पछता रहे है ,
इससे तो नही खा कर पछताना ही अच्छा है !
इस लिए अपने बरसो के अनुभव पे कह रहा हूँ ,
ओ कुंवारों मेरे राज दुलारो देश के निहालो !
इस लड्डू को नही खाकर पछताना ही अच्छा है ,
शादी शुदा होने से तो आजीवन कुवारे रहना अच्छा है !
अटल जी की तरह !
इस लिए मेरे देश के भविष्य सावधानी हटी की दुर्घटना घटी !
इसलिए अपने विवेक का स्टेयरिंग थाम कर रखिये ,
दिल का गियर दिमाग का ब्रेक ठीक ठाक रखिये !
दुर्घटना स्थल के रस्ते पर अपने मन की गाड़ी ,
को जाने से बचाइए !
आइये कुंवारों की महफ़िल सजाइए और मौज मनाइये !

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