परमात्मा मेरी आत्मा में बसे हो तो ,
दर्शन दो मुझे मेरे रोम रोम में आ बसों !
वह शक्ति दो वह भक्ति दो वह बुद्धि दो !
तुम्हे जान सकूँ तुम्हे पहिचान सकूँ ,
तुम्हे देख पाऊ, वह द्रष्टि दो !!
मेरा रूप तू है तेरा रूप मै हूँ ,
तू मुझ मे मै तुझ में !
इस जीव जगत को बसाने वाला तू है ,
फ़िर ये कैसा मद भेद है !
ये मन भटके नही इससे भटकनो से निकल दे !!
किस मन्दिर में जाऊँ किस मूरत में पाऊँ !
हर सूरत में तू है कण कण में तू है !!
जीव जगत को चलाने वाला ही तू है ,
कहाँ कहाँ हो ये तो बता दो !!
में याचक नही मेरी कोई चाहत नही !
कुछ भी पाना नही ये सब कुछ तो है !
ये सुंदर सा तन ये निर्मल सा मन ,
तेरा दिया है इससे खोना नही है !
बस दया द्रष्टि तेरी बस तेरी कृपा हो !!
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