Tuesday, October 21, 2008

पिता का ता़स

जब भी उसकी शादी की बात उठती है ,
उसके पिताजी के सामने एक ही प्रश्न आ खड़ा होता है !

ये बेरोजगार नालायक निकम्मा बीबी को क्या ख़िलायेगा ,
क्या पहिनायेगा क्या ओडायेगा !
ख़ुद का पेट तो भर नही पा रहा है ,
क्या उसकी बड़ती हुई मांग की पूर्ति कर पायेगा !

मगर बेटे का कहना है की मेरी शादी करके तो देखो ,
बीबी को मलाई के लड्डू खिलाऊंगा !
नई नई साडिया पहिनाऊँगा ,
घुमाने फिरने ले जाऊंगा सिनेमा दिखाऊंगा !
नगर में अपनी भी उधारी चलती है ,
अपनी भी कोई साख है !

उस की मांग में भरूँगा,
तो उसकी बड़ती हुई मांग की पूर्ति भी में करूँगा !
जब खर्चे की मार पड़ेगी तो ख़ुद ,
कमाने निकल जाऊंगा !
आपनी ग्रहस्ती की गाड़ी ख़ुद चलाऊंगा !
माँ कसम पिताजी आप को नही सताऊंगा !

मगर पिताजी को शक है की ,
मेरी साख पर बेटे की साख है !
पिताजी का कहना है की इतनी बड़ती हुई,
उधारी कब तक चुकाऊंगा !
इस लिए मैने भी ठान रखा है ,
जब तक ये आपने पैरो पे खड़ा नही हो जाएगा ,
इससे घोडी पे नही चड़ने दूंगा !

एक बेरोजगार निक्कमे की शादी नही राचाऊँगा ,
चाहे उमर भर कुंवारा रह जाए !
मैने यदि शादी करवादी तो ,
अभी तीन है तीन से चार चार से छः हो जायेंगे !
इस महंगाई के दौर में बेचारी अकेली पेंशन में छः छः ,
का खर्चा कैसे चलाएंगे !
में तो बेमोत मारा जाऊंगा !

अतः इसकी शादी की बात मेरे सामने मत छेडिये बस रहने दीजिये ,
पहले इसके रोजगार की व्यवस्था कीजिये ,
फ़िर आकर इसकी शादी की सलाह दीजिये !
कृपया मेरी दुखती रग पे हाथ मत रखा कीजिये !!

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