Tuesday, October 21, 2008

मन का दिया

मेरे मन का दिया बुझ बुझ जाए रे !
गुथ गुथ मन की माटी रोज बनाऊँ मै !
ध्यान धरीं धरीं पकाऊँ मै !
संयम ने बल बल बाती रोज बनाऊँ मै !
उम्मीदों में भिगोइने भिगोइने रोज जलाऊँ मै !!

में खोया हुआ हूँ अपनों गैरों में ,
रिश्तो नातों में उलझा हुआ हूँ !
में जीवन की सच्ची राहों में भटका हुआ हूँ ,
वो जीवन की सच्ची राह दिखा दे !!

वो रौशनी मिले देख पाऊँ मै ,
ख़ुद को ही खुद में क्या !
ख़ुद ही में ख़ुद ही मै खोया हूँ ,
मै कौन हूँ मुझको बता दो !!

मै लालच की लहरों में बह बह जाऊँ ,
मोह माया की भवरों में कस कस जाऊँ !
आती है बुझाने नफरत की आंधी ,
कैसे बचाऊ मै मेरे मन का दिया !!

हर तरफ़ है अँधेरा छाया दौलत का कोहरा ,
कुछ आता नही है नजर सच झूठ की गलियों में !
टिमटिम टिमटिम टीमके मेरे मन का दिया ,
मेरे मन का दिया बुझ बुझ जाए रे !!

कभी तूफ़ान आते कभी झोके हवा के ,
मझदार में नैया कोई नही खिवैया !
डूब जाए ना मेरी नैया ,
ओ माझी तू ही पार लगा दे !!
मेरे मन का दिया बुझ बुझ जाए रे !

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