Thursday, November 20, 2008

बेटीयाँ

अंधेरे में रौशनी और धुप है हमारी बेटीयाँ !
इश्वर का रूप है हमारी बेटीयाँ !
ममता की मूरत करुना की सूरत है हमारी बेटीयाँ !
किसी का प्यार किसी का दुलार है हमारी बेटीयाँ !

सभ्यता और धेर्य सहयोग सद्भाव है हमारी बेटीयाँ !
दुःख में सुख की खुशबू और बहार है हमारी बेटीयाँ !
खुशियाँ लेकर आती है और सब में बाँट देती है हमारी बेटीयाँ !
किसी की माँ किसी की बहिन किसी की पत्नी किसी की बेटी,
रिश्तो को बंधने वाली रेशमी डोर है हमारी बेटीयाँ !

जहाँ प्यार ही प्यार है अपार वो छोर है हमारी बेटीयाँ !
किसी का घर किसी की ग्रहस्ती किसी का संसार है हमारी बेटीयाँ !
इन्हे सुख दो तो जिंदगी भर साँथ निभाती है हमारी बेटीयाँ !
जिंदगी के सफर में हम सफर बनके आती है हमारी बेटीयाँ !
भटके को राह उलझन को सुलझन धूप में छाव है हमारी बेटीयाँ !

जड़ता में गति कुमति में मति चरित्र में सती है हमारी बेटीयाँ !
झूठ में सच्चाई भूल में सुधार नफरत में प्यार है हमारी बेटीयाँ !
पुरूष का जीवन आधार बन जाती है हमारी बेटीयाँ !
बेसहारा को सहारा अपंग को बैशाखी बन जाती है हमारी बेटीयाँ !

इन्हे अबला ना समझो ये सबला है !
इनके धेर्य की परीक्षा मत लो बुझी ना समझो ,
वरना जरुरत में अंगार बन सकती है हमारी बेटीयाँ !
ज्यादा न गुर्राओ इन पर जुल्म ना ढाओ ,
वरना मिटा सकती है तुम्हे ऐसी शक्ति है हमारी बेटीयाँ !

अपनी मनमर्जी ना चलाओ इन पे गुलाम ना बनाओ इन्हे ,
वरना आजादी की जंग में दुर्गा काली बन सकती है हमारी बेटीयाँ !
इन्हे ना सताओ वरना अभिशाप बन जायेगी हमारी बेटीयाँ !
गर सताई गयी ज्यादा तो काली का रूप धारण कर सकती है हमारी बेटीयाँ !

इनको पराई ना समझो किसी का घर बसाने की लिए ,
अपनों से दूर अंजानो में जाने के लिए खुशी खुशी तैयार है हमारी बेटीयाँ !
अपने माँ बाप को आजीवन नही भुला सकती है ,
ऐसी याददास्त रखती है हमारी बेटीयाँ !

वंदना

ओ धरती माँ तुझ को शत शत वंदन ,
तुझको कोटि कोटि नमन वंदे मातरम ! -२
वंदे मातरम - ३ भारत माँ !

तेरे माटी पानी मिलकर तेरा कण कण उगले सोना ,
तेरी हरी भरी ये फँसले तेरे लहलहाते खेत !
तेरे भरे हुए खलिहान धन धान्य से भरती माटी !
घर घर का कोना माटी उगले सोना !!

तेरा निर्मल जल पीकर ये जीवन हुआ निर्माण ,
तेरी शीतल मंद पवन देती जीवन को प्राण !
तेरी रज रज है प्यार तेरे हम पे बड़े उपकार !
हर दिन गाए तेरे गुणगान - धरती माँ !!

तेरी बसंत ऋतू जो आती डाली डाली कनक बोराई ,
झूमे झूमे हर अमराई कुह कुह कोयल छेड़े तान !
करते पिहू पिहू पपीहा गान !
तेरे स्वर्ण सजे उद्यान मीठे मीठे फलों की खान !!

तेरी भोर सुहानी होती किरणे बिखरे जहाँ मुस्कान ,
तितलियाँ फूल फूल मंडराती गुनगुन भौरे करते गान !
रंग बिरंगे पंख पखेरू उड़ते उड़ते नीले नीले आसमान !
देते खुशियों के पैगाम !!

तेरे पर्वत ऊँचे ऊँचे जिनके शिख छुए आसमान ,
झर झर झरने गीत सुनाये नदियाँ करति कल कल गान !
कराती म्रदुल म्रदुल जल पान !!

तेरे रंग भरे त्यौहार लाये खुशियों की बहार ,
दीवाली आती है हर साल बनते मीठे मीठे पकवान !
घर घर सजती दीपों की मॉल जगमग जगमग हर घर द्वार !
रोशन धरती से आसमान !!

होली आती है हर साल लाती रंगो की बहार ,
सारे रंग जाये एक रंग बजे ढोल मृदंग और साज !
नाचे संग संग दे दे ताल झूमे नाचे गाये राग !
गली गली में उड़ते रंग गुलाल मस्ती में नाचे आँगन आँगन !!

और बरबाद ना करो देश को

मेरे देश के नेता मत बांटो वोट में देश को !
और विदेशों के हाथों में बेचो ना मेरे देश को !
रख हाथ कटोरे भीक न मांगो गिरवी रखो ना देश को !
फ़िर से गुलामी की जंजीरे पहना देना ना मेरे देश को !!

भूना लिया बापू गाँधी को चर गये सारे देश को !
ख़त्म किया इंदरा राजीव को खा गए लालबहादुर को !
खून से लथ पथ माँ का अंचल कफ़न नही आजादी को !
वीर शहीदों की माटी में ही दफ़न किया कुर्बानी को !!

न्याय हुआ नीलम चौराहे और हलाल किया इंसानो को !
सत्ता पैसा और कुर्सी ने रोंदा राष्टृ निशान को !
सत्ता की छीना झपटी ने भुला दिया सम्मान को !
जात पात के बंधन में ना बांधो मेरे देश को !!

धर्म मजहब की आग में झोंको ना मेरे देश को !
जुलुस और जलसों में अपना शक्ति प्रदर्शन बंद करो !
खून खराबा नफरत को और हवा ना दो अब दंगो को !
कोठी बंगले एशो अराम के छोड़ो सब अधिकारों को !!

संत्री मंत्री और जंत्री की तोड़ो लम्बी कतारों को !
उद्घाटन चाटन बंद करो झूठे वादे नरो को !
तुम्हे मात्रभूमि की सौगंध है और बर्बाद ना करो देश को !
आश्वासन भाषण बंद करो रोजी रोटी दो मेरे देश को !!

तन पे लंगोटी तन ढकने को माँ बहिनों को चुनरिया दो !
जीने को हवा पिने को पानी छत हो रात बिताने को !
सुख चैन अमन से जिये आदमी हर सुबह नयी खुशियाँ दो !
गर जन क्राँति जाग उठी तो रोक सकोगे ना लोगों को !!

छिन जायेंगे कोठी बंगले तख्त ये शाम जश्नों की !
असली चहरे सामने होंगे नोचेंगे दोहरे मुखोटे को !
गद्दारों को देश बदर कर सबक सिखायेंगे मक्कारों को !
देश द्रोही का मूल मिटाकर ललकारेंगे घूस खोरों को !!

अमीर गरीब

गरीबे रेखा से ऊपर रहने वाली लड़की की नजर !
गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लड़के से जा टकराई ,
लड़का घबराया लड़की मुस्कुराई !

लड़के ने अपने आप को संभाला और बड़ बडाया !
क्यो डोरे डाल रही हो हम पे जानेमन ,
क्या हमारे शरीर से दिल और खोपड़ी से मगज उड़ा दोगि !
हम आँहे भर भर कर मर जायेंगे आँखों में तुम्हारी तस्वीर लेकर ,
मगर तुम्हे न पाएंगे !
क्योकि तुम्हारे और हमारे बीच गरीबी की रेखा आजायेगी ,
तुम हमारी दुल्हन न बन पाओगी !

तुम दौलत की चकाचोंध में चकाचक हो हुस्न बेमिसाल रूप लाजवाब ,
जिधर देखो उधर तुम्हारे जलवे है खुशियाँ तुम्हारे चरण चूमती है !
क्या काया है संगमरमर सी क्या चहरा टमाटर से गाल ,
गुलमोहर से होंठ चिकनी चमड़ी गौरी काया आप के साथ है !
खुशियों के गाने मस्ती के तराने लोग आप के दीवाने !

लड़की: तुम भी इन्सान हो हम भी इन्सान है ,
फ़िर क्यो अंतर है आप में और हम में !

लड़का: क्यो की तुम दौलत के बीच रहती हो तिजोरी पे सर रख के सोती हो !
शानो सौकत वैभव आप के पास है कोठी बंगले गाड़ी आपके साथ है !
जब की हम फटेहाल फुटपाति दलित घ्रणित गंदे गाँवार हिन्दुस्तानी ,
हिंदुस्तान की गन्दी बस्ती में रहने वाले ,
मगर दिल हमारे पास भी है तन है मन है हम भी आदमी है !
हमारी भी भावनाए है हमारी भी इच्छाये है !
हमारी भी आंखे है नजर है हम भी डोरे डाल सकते है आप पे ,
हम भी चहरा सेवफल गाल गुलमोहर कर सकते है !
उजली काया चिकनी चमड़ी हसीन गोलमोल गोलगप्पा ,
हम भी हो सकते है !
फ़िर आपमें और हममे क्या अन्तर रह जाएगा ?

आपको कौन हसीन कहेगा ?
आप हम सब एक से हो जायेंगे कौन किसका मालिक कौन नौकर ,
कौन सेठ कौन साहूकार कौन कर्जदार!
कौन साहेब कौन अर्दली कौन गरीब और कौन अमीर कहलायेगा !
जब सभी गुलमोहर हो जायेंगे तो बुलबुल कौन कहलायेगा !
और कौन राजा और प्रजा रह जाएगा !
और गरीबी रेखा के नीचे अगर कोई नही रहेगा तो ,
हमारा देश विदेशो से अरबो खरबों का कर्ज कैसे ले पायेगा !
मेरे देश का नेता अपनी तोंद कैसे बडायेगा !

अतः हम आपकी खातिर गरीबी रेखा के नीचे है !
बासी दाल सुखी रोटी खाकर काली रात में तंग बस्ती में रहकर भी जिन्दा है !
आप हमारे चक्कर में मत पड़े वरना एक मिनिट में सारा नशा उतर जाएगा !
सुबह से शाम तक दो सुखी रोटी खाकर मजदूरी करोगी तो ,
थकान में दिमाग आसमान में पहुँच जाएगा !
और दिल हाथ में आ जाएगा !

आप हमारे साहेब हो हम आपके नौकर ,
आप जमीदार सेठ साहूकार मालिक मुखिया पटेल ,
हमारे माई बाप हो !
ये झुग्गियाँ नही होगी तो आपके महल कौन बनाएगा !
और गर सब नेता होंगे तो जनता कौन होगा !
और आप जब आकाश मार्ग से विमान में उड़ते हुए ,
भाषण देने के लिए किसी गाँव में उतरेंगे तो ,
आपके भाषण सुनने कौन आयेगा !
विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री जो भी आपको बनना है !
चाहे काबिल हो न हो ,
आपको इस पद तक पहुचाने के लिए ,
रुपयों के लालच में फंस कर आपको विजय श्री दिलवाने ,
के लिए वोट डालने कौन आएगा !

इसलिए हमें गरीबी रेखा के नीचे ही रहने दीजिये !
आप हमारा चक्कर छोड़े ,
ये आपके हुस्न के डोरे किसी गरीबी रेखा के ऊपर रहने वाले ,
नौजवान पर डाले !
आप भी धन्य हो जाओगे वो भी धन्य हो जाएगा !
जिंदगी मौज मस्ती से गुजरेगी जीवन भर साँथ निभाएगा !
हमारे साँथ आओगी तो फांके पड़ जायेंगे !
३६५ दिन में दो बार खाना कभी कभी ही मिल पायेगा !
भर जवानी में हुस्न ढल जाएगा बदहाली मूफ़लिसी ,
गरीबी में एक झोपडी में ही रहते रहते जीवन गुजर जाएगा !
शायद जिंदगी के बीच सफर में ही आपको जो अभी दिख रहा हूँ ,
चार कंधो पे चढ़ कर शमशान चला जाऊँ !
और वापस लौट कर कभी नही आऊँ ,
और जवानी में ही आपको बेवा कर जाऊँ !!

मिलकर बदल दे ये हवा

ये कैसी चली है हवा सब कुछ ही बदला बदला हुआ !
आदमी आदमी को कुछ समझता नही रुपया पैसा ही सब कुछ हुआ !!

इंसानियत न जाने कहा खो गयी लहू लहू का ही दुश्मन हुआ !
नाम रिश्तो को देते है हम अपना ही अपना न हुआ !!

जिसको पाला पोसा बड़ा किया जो किया वो उम्मीद का घरोंदा ही बिखरा !
जो दिल का तो था हिस्सा मगर बुडी सांसो को उसने किनारे किया !!

हर तरफ़ नफरत की दीवारे खड़ी प्यार तो बस एक सपना हुआ !
मिलना जुलना तो होता मगर दिल से दिल का मिलन न हुआ !!

मतलब की बस यारी रही है दुःख दर्द का कोई न साथी हुआ !
जिनको गले से लगते है हम वो ही गले का फंदा हुआ !!

आओ मिलकर बदल दे हवा ये और प्यार का फूल खिलाये !
मतलब परस्त दिल से न हो वास्ता ना किसी को किसी से शिकवा गिला !!

जुलुस और पिता पुत्र

श्री गणेश विसर्जन के जुलुस में ,
मूंगफली के ठेले के सामने चार मित्रो के साँथ ,
मूंगफली चबाते हुए एक नवजवान पुत्र से ,
उसके पिता जा टकराए !
पिताजी चिलम में टुन्न थे पुत्र जी टनाटन बोतल बंद !

पिताजी ने जैसे ही पुत्र को पहिचाना ,
सर से पैर तक म प्र शाशन की बस की तरह भनभनाये !
और उसके रेडियेटर के पानी की तरह खद्खदाते हुए उबल पड़े !
और भन भनाते हुए बड़ बडाये !
क्यो तुझे ना तेरे सम्मान की चिंता है न मेरे सम्मान की ,
जो खुलेआम शराब पीकर आवारा गर्दी करता है !

सम्मानीय पिताजी मैने तो छुपकर पी थी !
आपको कैसे दिख गयी , खुलेआम तो आपने कर दी !

तुझे थोड़ी बहुत शर्म भी आती है बेशर्म !

शर्म तो आती है पिताजी इस लिए ही तो पी है !
ताकि बेशर्म हो जाए जी में आए वो कर पाए !
मौज मस्ती मनाये इंजॉय माय फादर एन्जॉय !!

अरे पिताजी आप ही शरमा जाते !
चुप चाप मेरे बाजु से निकल जाते !
मुझे नजरअंदाज कर जाते !

अरे मुर्ख मेरा तो शर्म से माथा झुका जा रहा है !
तुझे पैदा करके ही पछता रहा हूँ !
बेवकूफ निकम्मे शराब भी कोई पीने की चीज है !!

आदरणीय पिताजी में आपके लायक नही था तो मुझे इस जमीन पे क्यो लाये ?
और शराब पीने के लिए नही है तो हमारी सरकार ने ,
शहर शहर गाँव गाँव गली मोह्हले में शराबखाने क्यो खुलवाये ?

अरे उल्लू मुह्जोरी करता है न पड़ता लिखता है आवारा गर्दी !
दो साल में पाचवी तीन साल में आठवी ,
दो साल से दसवी में फेल हो रहा है क्या पंचवर्षीय योजना बनाएगा ?
लगता है इस साल तो पास नही हो पायेगा !

पिताजी में इस मामले में सरकार की मदद कर रहा हूँ !
अगर में हर वर्ष पास हो गया होता तो में भी पोस्ट ग्रेजवेट ,
बेरोजगार होता और सरकार की चिंता बड़ जाती !
एक बेरोजगार को रोजगार देने की ,
बेरोजगारों की पंगती में एक संख्या और बड़ जाती !
और कोई आप से पूछे आपका लाडला क्या कर रहा है !
तो आप बड़े गर्व से कह सकते है मेरे लड़का अभी पड़ रहा है !

अरे मेरे कुल के लाल तुझे कब समझ आएगी !
तेरे उमर के लड़को की शादी हो गयी है !
तेरी शादी हो जाती घर में बहु होती गोद में लड़का ,
तेरी जगह वो पड़ता !

पिताजी जब हम न पड़ेंगे न पास होंगे न आगे बढेंगे ,
न हमारा कोई रोजगार होगा और ना शादी होगी !
न बेटा इसलिये पिताजी उस बेटे की जगह इस बेटे को पढाये !
और वैसे भी देश की जनसँख्या एक अरब से ऊपर हो गयी है !
अतः जनसँख्या वृधि न होने में मुझे देश की मदद करने दो !
श्री अटल जो को देखिये अकेले ही अकेले आगे न पीछे ,
मुझे भी अटल जी की तरह रहने दीजिये !
देश की कुछ जिम्मेदारी मुझे भी उठाने दीजिये !
ये शादी का चक्कर छोड़ो ये फंदा मेरे गले मत डालिए !
मेरे गले को स्वतन्त्र रहने दीजिये !

पत्नी की परतंत्रता की बेडीयो में जकड़ने से मुझे बचे रहने दीजिये !
और आप भी अपने आप को दहेज़ लोभियों की सूचि में जाने से बचाए रखिये !
और माँ को सास के खलनायीका के रोल में जाने से बचाइए!
माँ को माँ रहने दीजिये !

बहु जलाने के मामले में फसने से माँ के साथ साथ ख़ुद भी बचे रहिये !
न सास होगी न बहु न ससुर न झगड़े होंगे !
और न रोज रोज के घर में लफड़े,
और न माँ बाप बहु बेटे के अलग अलग चुल्हे ,
माँ को आजीवन माँ ही रहने दीजिये !
पिताजी आप पिता ही रहिये और मुझे किसी के बाप की बजाये ,
आप का बेटा ही रहने दीजिये !
हम आजीवन साथ रहेंगे कभी न बिछडेँगे ,
अपने घर को बटवारे से बचाइए !

मेरी शादी की तरफ़ से बेफिक्र हो जाइये !
२५० ग्राम गरमा गरम मूंगफली ले जाइये !
माँ और आप घर पर साथ बैठकर खाना ,
और जब नींद आ जाए सो जाना !
जुलुस में बड़ा गरमा गर्म मसाला है बहुत मौज मस्ती ,
आपके गतिरोध की लाल झंडी हटाइए !
आपका जुलुस घर की तरफ ले जाइये ,
हमारे जुलुस को आगे बड़ने के लिए हरी झंडी दिखाइए !

यही जिंदगी है

अपनी धरती अपना अम्बर ये सारी जमी ही अपनी है !
जहाँ रहो आबाद रहो खुश रहो खुशियाँ बाँटो यही जिंदगी है !!

जैसा सोचोगे वैसा पाओगे, जैसा बोओगे वैसा काटोगे !
जैसी करनी वैसी भरनी यही जिंदगी है !!

जो मिल गया है उसे सहेजो जो खो गया उसे जाने दो !
खोने का गम मिलने की खुशी ये आनी जानी है यही जिंदगी है !!

फूल के संग कांटे भी है धुप के संग संग छाँव भी है !
सुख दुःख एक सिक्के के पहलु जिंदगी एक पहेली है !!

पल में आशा पल में निराशा आँखों में अश्क तो होटों पे मुस्कान !
हर पल बस मुस्कुराते रहो हंसो और हँसाते रहो यही जिंदगी है !!

कल होना हो कल का ना भरोसा आज अभी जो होना होगा हो जाने दो !
बीत गया वो ही पल अपना उम्र की यही तो गिनती है यही जिंदगी है !!

संभल संभल के

ये जिंदगी है कांच सी कही चटक ना जाए रे !
संभल संभल के मनवा संभल के रहना रे !
कही चटक चटक के बिखर ना जाए रे !
एक बार बिखर गयी तो ये जुड़ नही पाए रे !!

ये जिंदगी एक भूल भुलैया है ये जिंदगी एक भूल भुलैया ,
इस भूल भुलैया में रह काही भटक ना जाए रे !
संभल संभल के संभल मनवा राह संभल के चुन रे !
ऐसी राह चलना रे जो मंजिल तक ले जाए रे !!

ये जिंदगी एक हवा का झोंका है रुख बदल ना जाए रे !
संभल संभल के संभल के मनवा तू बस एक घाँस का तिनका ,
ये कही उड़ा ना ले जाए जमी पकड़ के रहना रे !
ये झोंका कहाँ से कहाँ ले जाए रे !!

ये जिंदगी एक गम का दरिया है सुख के मोती भी मिलते है !
एक बार जो मिल गए ये जिंदगी खुशियों से भर जाए रे ,
संभल संभल के संभल के मनवा डुबकी संभल के लगा !
ये जिंदगी कही गम में ना डूब जाए रे !!

ये जिंदगी एक पानी का बुलबुला ये जाने कब खत्म हो जाए !
संभल संभल के संभल के मनवा पल का ना भरोसा ,
एक एक धड़कन का भी वहाँ हिसाब रहता है !
ये धड़कन जब तक चले सभी से मिलकर रहना रे !!

रिश्तों की तलाश

कहीं ना कहीं तो रिश्तों में बनी हुई मिठास है !
इसलिए ही तो रिश्तों में बना हुआ विश्वास है !
वरना रिश्तों में बंधन से उठ जाता विश्वास है !
रिश्तों में प्राण फुकता प्यार है !!

रिश्तों की ताकत ही विश्वास है !
मीठी मीठी बोली और मधुर मधुर व्यवहार है !
रिश्तों में चलती साँस है !
कही ना कही तो इंसान में इंसानियत है !!

और प्यार मोहाबत की बात है !
तब ही तो दिल दिल के आस पास है !
दूर दूर से मिलने को आते है !
रिश्तो में कोई खुशबू ही ऐसी खास है !!

छल कपट ना चलता है रिश्तों में ,
वो रिश्ता ही क्या रिश्ता है जिसमे !
नफरत की चुभी फंस है ,
स्वार्थ से रिश्ते नही चलते है !!

झूठ जहाँ आ जाता है रिश्तों में बनती गांठ है !
एक बार टूट गयी डोर जो लाख जतन करो ,
जुड़ नही पाती है बंधती है उसमे गांठ है !
द्वेष इर्ष्या आ गयी रिश्तों में समझो दूध में पड़ गयी छाज है !
वो रिश्ता ही रिश्ता नही जिसमे पड़ी खटास है !!

रिश्ता ही वो रिश्ता है जिसमे प्रेम और अनुराग है !
रिश्तो के दो छोर सहयोग और सोहार्द है !
ख़ुद ही ख़ुद में खो गए है लोग ,
किसी को किसी की ना आस है !
इसलिए तो मधुर मधुर रिश्तों की ,
सब को ही आज तलाश है !!

फ़िर कोयल कुह कुह कुह्केगी

हम बदलेंगे सब कुछ बदलेगा नयी बहार बहायेंगे !
नया साज ले नयी राग ले कोई नया तराना गायेंगे !
नया जोश ले नया रूप ले भारत नया बनायेंगे !
हर तरफ़ खुशहाली की खुशबू हम बिखराएंगे !!

अपने ऋम मेहनत से हम बंजर को खेत बनायेंगे !
अपने खून पसीने से सिचेंगे खेत जहाँ लहलहाएंगे !
इस धरती के बेटे है हम इस धरती को स्वर्ग बनायेंगे !
कोई रहेगा अब ना भूखा इतना अन्न उगायेंगे !!

बूंद बूंद जल संग्रह करके कल कल धार बहायेंगे !
सुखे ताल तलैया नदिया फ़िर जल से भर जायेंगे !
हर तरफ़ हरियाली होगी इतने वृक्ष उगायेंगे !
कोई रहेगा आब ना प्यासा सबकी प्यास बुझाएंगे !!

फ़िर कोयल कुह कुह कुह्केगी मोर नाच दिखायेंगे !
डाल डाल पर पंछी चहकेंगे जंगल में मंगल होगा !
बुल बुल चिडियाँ तोता मैना फ़िर से शोर मचाएंगे !
नीले नीले नील गगन पर उड़ उड़ रंग बिखराएंगे !!

आपस में सब भेद भुला के संगठन शक्ति बनायेंगे !
विश्व बंधू भावना दिल में जगाकर हम परचम फहराएंगे !
विध्वंशो की राह छोड़कर सर्जन ही अपनाएंगे !
शान्ति अहिंसा के मूलमंत्र को जन जन तक पहुचायेंगे !!

शिक्षा का संदेश ले हम घर घर तक जन जनता पहुचायेंगे !
कोई रहेगा ना अनपडृ निर्धन ऐसा जतन लगायेंगे !
सबका अपनी हो जमी असमा कोई ऐसा न्याय बनायेंगे !
राष्ट्र भक्ति और देश प्रेम से ओत प्रोत हो वतन पे मर मिट जायेंगे !!

गुजरे जो दौर गम के

पतझर सी जिंदगी है राहे है सूनी सूनी !
खुशियाँ दूर हमसे जैसे डाली से दूर पाती !!

बिखरा है रंग गुलाबी डाली है खाली खाली !
पतझर का पलाश हूँ में जिंदगी है खाली खाली !!

दिवानो की तरह राहे दर दर भटक रहे है !
परवानो की तरह शमा में रह रह के जल रहे है !!

तनहाईयों में कटती राते करवटे बदल बदल कर !
रह रह के आंहे भरते तकिया मसल मसल कर !!

तनहा ये जिंदगी है जमाना भी बेरहम है !
मोहब्बत को मार डाला रस्मो की दे कसम है !!

दिल में है जख्म गहरे आँखों में बस उदासी !
साहिल पे हम खड़े है हर चाहत रही है प्यासी !!

खाली पैमाने की तरह लुडकते जिंदगी मय खाने सी हो गयी है !
कैसे भुलाये गम को पास मय नही ना साकी है !!

स्याही में दिल डूबा है हाथो में बस कलम है !
कैसे लिख दे गीत खुशियाँ जब गुजरे जो दौर गम के !!

चलना तेज है

तेज है रफ्तार ज़माने की ,
चलना तेज है चलना तेज है !
एक कदम आगे एक कदम आगे ,
संभल के हर एक कदम चलना तेज है !

मुश्किलें आयेंगी राहों में मुश्किलें,
मुश्किलें करना है आसान चलना तेज है !
चलना तेज हर एक कदम चलना तेज है !!

तुफाँ रोकेंगे राहे सीना तान के ,
रुख बदलना है तुफाँ का चलना तेज है !
संभल के हर एक कदम चलना तेज है !!

मौत मिलेगी कदम कदम पे मौत है !
मौत से भी लड़ना होगा चलना तेज है !
एक कदम आगे संभल के कदम चलना तेज है !!

पर्वत आयेंगे राहे रोकेंगे ,
राहे गाड़ना है चट्टाने तोड़ के चलना तेज है !
एक कदम आगे संभल के एक कदम आगे चलना तेज है !!

हौसले देना है कदमो को हौसले ,
हौसले देंगे मन विश्वास चलना तेज है !!

प्यार की खुशबू

नफरत से नफरत बड़ती है ,
नफरत ख़त्म होना चाहिए !
हम आदमी है आदमी को ,
आदमी से बस प्यार होना चाहिए !

जिस दिल में गर प्यार नही ,
वो पत्थर है इंसान नही !
पत्थर को पिघलादे ,
ऐसा प्यार दिल में चाहिए !

नफरत काटो प्यार बांटो ,
जिससे मिलो दिल से मिलना चाहिए !
नफरत के शुलो को ,
अपने दिल से हटाना चाहिए !

गर जिंदगी में प्यार हो तो जिंदगी का है मजा ,
जिंदगी में प्यार नही तो जिंदगी एक सजा !
जिंदगी में चाहते हो खुशियाँ ही खुशियाँ ,
जिंदगी को प्यार की खुशबू से सजाना चाहिए !

इक्कीसवी सदी आ गयी है

किसी को किसीसे मोहब्बत नही है !
किसी को किसी की चाहत नही है !
रिश्तो में कैसी दरार आ गयी है !
शायद दिलो से मोहब्बत फरार हो गयी है !!

मतलब की दुनिया में नफरत पली है !
होठो पे मीठी बाते मगर दिल में छुरी है !
किसपे कैसे कैसा भरोसा करे हम ,
भरोसे के पीछे दगा जो छिपी है !
दोहरे चहरे की तरकीब सभी को रास आ गयी है !!

सच्चाई कही पे दफ़न हो गयी है !
झूठ पे देखो चमक छा रही है !
मर्यादा सारी बदल सी गयी है !
टी वी पे नग्नता की बहार छा रही है!!

बुडी पीड़ी को देखो यारों चने चबा रही है !
युवा पीड़ी को देखो नशे में डूबी जा रही है !
किसी को किसीपे रहम ही नही है !
लगता है साडी दुनिया ही बेरहम हो गयी है!!

सत्ता के लिए देखो यहाँ वहा जंगे छिडी है !
बारूदी इरादे लिए दुनिया आमने सामने आ खड़ी है !
भौतिकता की दौड़ में ये दुनिया ना जाने कहा जा रही है !
नैतिकता के हुए पतन में इक्कीसवी सदी आ गयी है !!

चलने से मंजिल मिलेगी

जिंदगी के इस सफर में चल चला चल चल !
ओ मुशाफिर चल चल चला चल!
चलने से ही तुझे मंजिल मिलेगी!
मंजिल ख़ुद चल कर नही आती ,
ख़ुद को चलकर ही जाना है!

थक के गर तू रुक गया तो ,
कैसे राह कटेगी!
कैसे बडेगा सफर ये आगे ,
कैसे मंजिल मिलेगी !

मुश्किलों में भी राह मिलती है ,
कभी राह नही थमती है !
थम जाता है मुसाफिर पर,
वक्त घड़ीया नही थमती है !

धुप धुप नही है जिंदगी में ,
कही ना कही तो छाव में दोपहर भी मिलेगी!
शाम ही शाम नही है जिंदगी में ,
हर शाम को भोर भी मिलती है!

हमें बस

दर्दे दिल की हमे बस दवा चाहिए ,ए खुदा तेरी बस दुआ चाहिए !!
मर्ज ऐसा है क्या करे बंया , उस के घर का बस हमें पता चाहिए !!

बेरुखी ही उसकी मार के गयी , उनकी हमें बस वफ़ा चाहिए !!
जो खो गया है बस मिलजाए हमें , ना और किसी से नफा चाहिए !!

यूँ जी न सकेंगे तन्हाइयो मै हम , उसकी मोहब्बत की हवा चाहिए !!
क्यों मिल रही है हम को तन्हाई की सजा , जो ना हुआ वो नामे गुनाह चाहिए !!

देश भक्तो का शायद टोटा हो गया

रक्षक ही भक्षक हो गए तो कैसे देश बचेगा !
लोकतंत्र शातीरो की रखेल हो गया ऐसे कैसे देश चलेगा !
भ्रष्टाचार में यारा अफसर नेता जनता क्या !
सारा देश ही डूब गया सारा देश ही डूब गया !

जिनसे पूछो यही कहता है भगवान् भरोसे छोड़ो !
ऐसे ही चलेगा ऐसे ही देश चलेगा !!
सिधांत संविधान रख दिए है ताक में !
और होते है घोटाले यहाँ बात बात में !
चोर चोर मौसेरे भाई इनसा मिले सिपाही कोन किसको ,
पकड़े गए अपने अपने मन का जहाँ कानून चल गया!

बस बाते है सेवा की चरित्र भ्रष्ट हो गया !
दौलत के बाजार में ईमान आदमी नीलाम हो गया !
किस किस को हम कैसे पहचाने कोन कोन बईमान हो गया !
जब चहरे पर ईमान लिखा हो दिल दिल बेईमान हो गया!!

ये बन्दर से इंसान बना था वापस बन्दर हो गया !
हरकत इनकी सांप छचुन्दर गिरगिट जैसे रंग बदलता ,
बिछुओ का डंक हो गया सच को इसने बेच दिया !
ये झूठ का गुलाम हो गया झूठ का गुलाम हो गया !

जहाँ देखो वहा लुच्चे लफंगों की तूती है !
आम आदमी यहाँ पर बस गुठली रह गया !
गली गली में चोर उचक्के हो गए छुट भइया नेता ,
गाँव गाँव राजनीती की मचान हो गए!

प्रतिनिधि यहाँ बिक जाते है बाजारों में ,
सत्ता के खातिर अपनाते हथकंडे हथियार है !
हर तरफ़ दलाली है दलालों का बोल बाला हो गया है !
लगता मेरे देश का हर नेता अब दलाल हो गया !!

धर्म पंथ के झंडे थामे राजनीती के पंडो ने !
डाकू तस्कर मंत्री हो गए माहिर है हथकंडो में !
किन को में अब जनता कह दू हर आदमी यहाँ नेता हो गया !
शहीदों के इस देश में देशभक्ति का शायद टोटा हो गया !!

तहलका के तहलके में मेरा प्यारा देश राम कृष्ण ,
का ये देश नानक गोविन्द का ये देश ,
गौतम गाँधी का ये देश लाल पाल तिलक का देश,
शीवा राणा का ये देश भगत बोस का ये देश,
शेखर बिस्मिल का ये देश सारे जहाँ में बदनाम हो गया !
सत्ता के मदमास्तो का चमड़ा हो गया मोटा,
दिमाग आसमान हो गया!!

जिंदगी है कागज़ की नाव

जिंदगी है नाव संसार की नदियाँ में बहती जाए रे !
कभी साहिल पे तो कभी साहिल से दूर ,
लहरों के बीच बीच बहती जाए रे !

तुझे जाना है दूर और दूर तेरा गाँव है !
ये जिंदगी कागज की नाव है ,
इसे हौले हौले संभाल इससे थाम थाम रे ,
प्रीत की डोरी से बाँध बाँध रे !

इसका तू ही खिवैया इसकी तू ही पतवार है ,
प्रियतम को बनाले बादवान रे !

रुख हवाओ का बलदे ऐसे आए तूफान है ,
झूठ मोहमाया की पल्लारो में उठाते उफान है !
सच को पहिचान सच की ताकत को जान ,
सच को बनाले बादवान रे !

चल कपट के मगर सूंस लहरों के बीच,
लहरों के बीच बीच नफरत की बनती भवरे है!
अपने हौसलों को जान अपनी ताकत पहचान ,
उम्मीदों को बनाले बादवान रे!

कभी आती है गम की भी लहरे लहरे,
संग संग लहरों की कल कल में खुशियों के गान है !
अपनी खुशियाँ पहिचान उनकी ताकत को जान ,
खुशियों को बनाले बादवान रे !

देश भक्ति की बात नही

गाँधी तेरी कसमे बेचीं बेच दिया ईमान यहाँ!
गाँधी तेरे अनुयायी हुए सबके सब बईमान यहाँ !!
सत्ता के खातिर इनने तो सत्य अहिंसा छोड़ दिया !
वीर शहीदों के सपनो को धुंआँ बना कर उड़ा दिया !!

उग्रवाद के दावा नल से भारत माता घायल है !
भीगा भीगा अंचल है और जख्मी जखमी पायल है !!
उजड़े उजड़े घर आँगन है सिसकारी में साँझ ढली!
और आंसू पीड़ा जहाँ में है रोज लहू ले भोर चली!!

तुष्टिकरण की परिपाटी ने उग्रवाद को पला है !
वोट बैंक की खातिर अपना देश धर्म बेच डाला है!!
सत्ता के ठेकेदारों ने जातिवाद का चलन लाये है !
अपनी अपनी ढपली बजाते अपने अपने राग अपनाए है !!

राजनीती के पंडो ने सारे देश को ही चट कर डाला है !
नामी गिरामी गुंडों को इनने ही मिल कर पला है !!
वीर शहीदों की कुर्बानी को इनने खूब भुनाया है !
अपने अपने स्वार्थ सिद्धि में सत्ता को ढाल बनाया है !!

नारेबाजी हंगामो ने संसद को सड़क बनाया है !
देश के कर्णधारो ने ही संसद का सम्मान गिराया है !!
जिनके आचार विचार नही कुछ उनने संसद में आसन पाया है !
आपस की धेंगा मस्ती ने संसद को अखाड़ा बनाया है !!

मक्कारी की होड़ मची है और देश भक्ति की बात नही !
आजादी अंग भंग हुई और लोकतंत्र की टांग नही !!
संविधान पर होता हमला हो जाती है मौत कही !
न्याय पालिका तो है लेकिन सत्य झूठ की खोज नही !!

बिखराव के चले चलन में आओ जोड़ने का कुछ जतन करे!
विधवंश की राह छोड़कर आओ मिलकर सर्जन करे!!
परिवर्तन के इस युग में आओ राष्ट्र चरित्र निर्माण करे !
प्रगति की राह पर बड़कर राष्ट्र का नव निर्माण करे!!

मेरा भारत है महान

हम स्वतन्त्र है मगर मन्त्र आजादी के भूले हम !
आजादी लहुलुहान कुर्बानी भूले हम !!
संविधान ने तोडा़ दम बिखरे तिरंगे के रंग !
अब अनेकता में एकता का रहा नही सम !!

कश्मीर की वादियों में बिखरा है गम !
केशर की क्यारियों में उगे बेशरम !!
भँवरो ने कलियों पे ढाया है सितम !
मालियों ने मिलके उजाड़ा है चमन !!

गणतंत्र टुकड़े टुकड़े तार तार हुए हम !
वोटो वोटो की दीवारों में बट गए हम !!
आरक्षण की जंजीरों में बँध गए हम !
अपनों ही अपनों में खो गए है हम !!
देश देश खो गया है बस यही गम !

राजनीती हुई घिनोनी नेता हुए बेशरम !
जोड़ तोड़ दल बदल का चलाया है चलन !!
इन्हे सत्ता कुर्सी चाहिए चाहे बिक जाए चमन !
बागड़ खेत को ही खा रही है देखो ये सितम !!

कर्णधार हुए बईमान तंत्र हुआ बेलगाम !
खाते घूस दलाली भ्रष्टाचार खुलेआम !!
टूटी राष्ट्र की कमान देश भक्ति गुमनाम !
नरो नरो में ही रह गया भारत है महान !!

सारे बगल कोवे मिल हो गए है हंस !
यहाँ आदमी बदलते है गिरगट जैसे रंग !!
काले नागो जैसे फन बाते बिछुओ की डंक !
कथनी करनी को देखे तो रह जाए दंग!!

रिमझिम रिमझिम बरसे ना सावन !
मंद मंद भीनी चले ना पवन !!
सावन भादो बदले बदले मौसम के रंग!
शायद पानी और हवा में घुल गयी भंग !!

अब भी जागो वक्त है बिखर जाएगा वतन !
अब बचाना है आपने ही लोगो की गुलामी से वतन !!
आओ एक हो जाए जिनमे थोडी बची देश भक्ति की तपन !
ललकारे उनको जिनने छीना देश का सुख चैन अमन !!

Wednesday, November 19, 2008

ये जिंदगी क्या है

अंधेरो में भटका हुआ है हम !
कही कोई रौशनी तो मिले हमें !
जो अंधेरो से निकाले हमें !
ये जिंदगी क्या है ये बतादे हमें !

ये जिंदगी एक ख्वाब सी लगती है ,
हर तरफ़ वीरानी सी नजर आती है हमें !
बहारों को ना जाने क्या हो गया है ,
खुशबू भी गुमसुम सी नजर आती है हमें!

हम चौराहे पर आ खड़े है ,
ये जिंदगी बाजार नजर आती है हमें !
हर तरह दौलत के लुटेरे है यहाँ ,
ये जिंदगी तार तार नजर आती है हमें!

इंसानियत बम के धमाको में गुम है ,
हर तरफ़ हैवानियत नजर आती है हमें !
दिलो में शोले धधकते हुए है ,
हर आँखों में आग सी नजर आती है हमें!

यहाँ आदमी की औकात ही क्या है ,
बस चलती फिरती लाश नजर आती है हमें !

हम प्रगति कर रहे है

झूठ महंगाई की तरह फूल फल रही है!
और बड़ रही है आसमान छु रही है !
सच्चाई जमीन में गड़ गयी है !
ईमान यह देखकर अपना अस्तित्व बचने के लिए ,
यहाँ वहाँ छुपता फ़िर रहा है !

बईमानी हर आदमी को अपने आगोश में भर रही है !
द्वेष इर्श्या की बड़ती हुई सफलता को देख कर ,
दया करुणा अपनी असफलता पे व्यथित होकर ,
सूली पर चढ़ गयी है !
भ्रष्टाचार का कारोबार दिन दुगना रात चोगुना ,
फल फूल रहा है जिनसे कई की दूकान चल गयी है !

बदले नफरत की फसल तो गाँव गाँव शहर शहर !
आदमी की ह्रदय स्थली पर राजनीती का खाद पानी ,
पाकर गाजर घांस की तरह फल फूल रही है !
प्यार उपकार की फसल को उगने के लिए और पनपने के लिए ,
जमीन ही ना रह गयी है !

अकर्मंयता ने चापलूसी का मुखोटा लगा रखा है!
इस लिए कर्तब्यनिष्ठ के आईने पर ,
अंदेखी की धूल चढ़ गयी है !
अशलील और अशब्द स्वार्थ की कड़वी ,
चासनी में घुल कर जुबा पर ऐसे चिपक गए की ,
वाणी की मधुरता ही मर गयी है !

फ़िर भी यह दुनिया प्रगति कर रही है !
में नही यह सारी दुनिया कर रही है !
लगता है ये दुनिया भगवान् भरोसे ही चल रही है !

इंतजार जरी है

उनके इंतजार में चाँद तारे भी जागे !
जाग जाग कर जब सुबह हुई तो , सूरज से कह गए !
कहीं वो मिले तो उंनसे ये कहना साँझ ढले हमसे आकर तो मिलना !!

नदियों की लहरे आ किनारों पे ठहरी कस्तियाँ से अपने अपने साहिल को साधे !
सुबह जब हुई तो बहते धारों से कह गए !
कही वो मिले तो उनसे ये कहना साँझ ढले हमसे आकर तो मिलना !!

उड़ उड़ के पंछी अपने अपने घरोंदो में आए !
खुशबू और बहारों ने अपने डेरे बागों में लगाये !
सुबह जब हुई तो खिलते फूलों से कह गए!
कही वो यहाँ बागों में आए उनसे ये कहना साँझ ढले हमसे आकर तो मिलना !!

पूजा नमाज इश वंदना और होती अरदास !
मालिक से अपने अपने उनके लिए ही मांगे दुआए!
सुबह जब हुई तो आरती अजाने बहती हवओं से कह गयी!
कही वो मिले तो उंनसे ये कहना साँझ ढले हमसे आकर तो मिलना !!

साँझ ढली तो अंधेरे घिर आए माँओ ने घर अपने दीप जलाये !
सुबह जब हुई तो रंभाती गाए अपने बछडोँ से कह गयी !
यहाँ आए वो तो उंनसे ये कहना साँझ ढले हमसे आकर तो मिलना !!

आजादी के बाद कितनी ही सुबह हुई साँझ ढली कितनी !
मगर वो ना आए जिनका इंतजार था मगर वो ना आए जिनका इंतजार था !
वो कोई और नही है मेरे वतन की खुशी अमन चैन है वो !
जिनके इंतजार में हम तुम भी जागे !
जिनके इंतजार में अनेको शहीदों के सज गए जनाजे !!

Sunday, November 2, 2008

बेटो निकल गयो कुपाडू

ओ गप्पू जणू में तेरे बारे में सब कुछ जाणू !
तेरे क्या क्या कारनामे है मैकू एक एक मालूम !!

तू रोज सवेरे उठाकर सारे घर की लगता है झाडू !
बीबी सोई रहती है गर उसकी नींद में खलल पड़ जाए तो ,
ओ गप्पू जोरू वो तेरी ही लगा देती है झाडू !

रोज सुबह की चाय तू ही बनता है बीबी को बेड टी पिलवाता है !
गर चाय में चीनी कम हो जाए तो बीबी की डांट भी खाता है !
गर बीबी रूठ जाए तो गरमा गरम नाश्ता बनाकर खिलाता है !
बीबी के इशारो पे नाचता है उसकी एक आवाज में काँपता है !!
ओ बीबी के पालतू भालू !

घुस दलाली खता है अपना मॉल बनता है बीबी को साडिया दिलवाता है !
घर में सासुमा आ जाए तो रोज रोज पकवान बनवाता है !
गाँव में रह रही बुडी माँ को एक भी साडी नही लाता है !
माँ बोले मेरा बेटा निकल गयो कुपाडू जोरू को भाडू !!

Thursday, October 23, 2008

शादी का लड्डू

लोग शादी की सालगिरह मानते है ,
मुझे बड़ा आश्चर्य होता है !
की वो इस दुर्घटना को क्यो नही भूल पाते है !
मुझे जब भी इस दुर्घटना का ख़याल आता है !
तो सर से पैर तक काँपने लगता हूँ ,
थके हुए बुडे़ बैल की तरह हाँपने लगता हूँ !
पलभर के लिए तो भयभीत हो जाता हूँ !
हक्के बक्के भूल जाता हूँ कुछ पल के लिए बेहोश हो जाता हूँ !

जब से मेरे साथ यह दुर्घटना घटित हुई है ,
मेरी तो खोपड़ी ख़राब हो गयी है !
सारी चोकड़ी भूल गया हूँ ,
मेरी तो सारी हेकड़ी निकल गयी है !
सर की टेकरी और कमर कुबड़ी हो गयी है !
जब भी सोचता हुँ यह दुर्घटना घटित हो गयी है !
तो लगता है माँ बाप के कहने में आ गया ,
मेरी शादी का प्रस्ताव मेरे मन को भा गया !

जवानी का जोश था होश न हवास था ,
मन में फ़ुट रहे थे लड्डू कन्या को देखते ही हो गए लट्टू !
ऐसे में जीजा ने भी बहका दिया ,
साले मौका मत चुक करदे हाँ वरना उमर भर पछतायेगा !
कुंवारा ही रह जाएगा !
शादी हो जायेगी तो मौज मस्ती रहेगी ,
साथ में सुंदर पत्तनी रहेगी तेरी भी गृहस्थी बसेगी !
और सारी दुनिया समझ में आ जायेगी ,
नोन तेल मिर्च का भावः याद हो जाएगा !
में जीजा का आखरी वाक्य समझ न पाया !

और मै भी जान भूझकर ही दुर्घटना ग्रस्त हो गया ,
शादी के बंधन में बँध गया !
आजाद परिंदा गुलामी में कैद हो गया !
मगर मुझे क्या मालूम था की अच्छी खासी ,
हंसती खेलती जिंदगी तबाह हो जायेगी !
चार दिन की चाँदनी फ़िर वही अँधेरी रात आएगी ,
जवानी की सारी मस्ती उतर जायेगी !
जब से पत्नी के साथ सात फेरे लगे है ,
निन्नानवे के फेरे में हूँ !

काश ये दुर्धटना मेरे साथ घटित नही होती तो ,
मेरी मन मर्जी का राजा होता चैन से खाता चैन से सोता !
मगर जब से दुर्घटना ग्रस्त हुआ हूँ ,
मेरा तो तेल ही निकल गया है !
कोलू का बैल हो गया हूँ ,
मगर निकल नही पाता हूँ !
निकलने की कितनी ही कोशिश करता हूँ ,
और उतना ही फस जाता हूँ !

एक नही दो नही तीन है ,
तीसरी बार माँ के कहने पे फंस गया !
नस बंदी से डर गया ,
दसो दिशाए बंद है !
बीबी सहित चार है ,
साथ में माँ बाप बीमार है !
आस पास रिश्तेदार है ऊपर से महंगाई की मार है ,
नीचे उधार बेकारी की मार है !
बड़ी लाचारी है खीचना गृह्थी की गाड़ी है !

जिस पर श्रीमती जी फरमाती है ,
शादी की सालगिरह पर मेरे लिए क्यो नही लाते जी साडी हो !
लोग अपनी बीबी बच्चों के लिए क्या क्या नही करते है !
कही से भी लाते है अच्छा खिलाते है ,
पिलाते है पहिनाते ओडाते है !
आप जो है की कुछ नही कर पाते है !
आप से जब भी कुछ कहते है तो अपने हाथ ,
खडेकर खड़े हो जाते है सरकार !
अपनी सरकार की तरह निकम्मापन दिखाते हो ,
आपके साथ शादी करके ही पछता रही हूँ !
मैने कहा श्रीमती जी शादी एक ऐसा लड्डू जो खाए ,
वो भी पछताए जो नही खाए वो भी पछताए !

हम तो खाकर पछता रहे है ,
इससे तो नही खा कर पछताना ही अच्छा है !
इस लिए अपने बरसो के अनुभव पे कह रहा हूँ ,
ओ कुंवारों मेरे राज दुलारो देश के निहालो !
इस लड्डू को नही खाकर पछताना ही अच्छा है ,
शादी शुदा होने से तो आजीवन कुवारे रहना अच्छा है !
अटल जी की तरह !
इस लिए मेरे देश के भविष्य सावधानी हटी की दुर्घटना घटी !
इसलिए अपने विवेक का स्टेयरिंग थाम कर रखिये ,
दिल का गियर दिमाग का ब्रेक ठीक ठाक रखिये !
दुर्घटना स्थल के रस्ते पर अपने मन की गाड़ी ,
को जाने से बचाइए !
आइये कुंवारों की महफ़िल सजाइए और मौज मनाइये !

जर जोरू और जमीन

जर जोरू और जमीन ने कइयो को लड़ा दिया है !
जर जोरू न जमीन रही सब कुछ लुटा दिया है !!

अदालतों में घूम घूम कर सारा वक्त गवा दिया है !
हाथ कुछ नही रहा कइयो को दुश्मन बना लिया है !!

जर जब तक रही जोर रहा जोरू ने दीवाना बना दिया है !
जमी जब तक रही मालिक रहा फ़िर भिकारी बना दिया है !!

जर किस के पास रही है जोरू पर भरोसा ही क्यो किया !
ये जमीन किसके साथ गई है इसने आदमी को खुदमे मिलाया !!

जर जिसने महनत से कमाई है और जोरू को अपना बना लिया !
जमी बस सर छुपाने को चाही है उसने खुशियों को पा लिया !!

आमिरी गरीबी जो भी रही हो जो फकीराना अंदाज में जिया है !
जर जोरू और जमीन से मोह न किया है उसने जिंदगी को मौज से जिया है !!

कलयुग

दम तोड़ती संवेदनाये संवेदना शुन्य होते लोग !
पत्थर दिल होते इंसान टूटते रिश्ते बिखरते परिवार !

भौतिक सुखो की दौड़ में बहु बेटे बोझ बनते माँ बाप !
निराश्रित होता बुडापा उनका घर उनकी जमीं उनकी संपात्ति ,
मगर विपत्ति से झुझते माँ बाप !
उपेक्छा अकेला पन झेलता बुडापा ,
वृधाश्रम में बड़ती संख्या ,
क्या यही है हमारी संस्कृति सभ्यता !

खुलापन प्रगति की दौड़ ,
क्या यही कहती है हमारी गीता कुरान ,
बाइबिल उपनिषद वेद पुराण !
सेवा सद्भाव को डस रहे है स्वार्थ के भुजंग ,
सहिष्णुता सोहार्द दया करुना अश्को को सुखा रही है !
द्वेष इर्शया की तपन होटों की मुस्कान ,
आँखों की खुशी चहरे की चमक छीन ले गयी है !

कुंठा हीनता प्रति स्पर्धा की घुटन ,
फ़िर भी अपने आप को इंसान कहते है !
इस दुनिया में अर्थवादी भौतिकवादी ,
सत्तावादी ऐशो आराम भोगी लोभी सभी लोग !
क्या यही है इस कलयुग का गुना भाग घटाव योग !

क्या हिसाब करे

क्या पड़े और क्या लिखे ,
जब दिल की किताब ही कोरी है !
जुबाँ पर प्यार के दो बोल नही है ,
प्यार की परिभाषा ही हारी हारी है !

आतंक के बोल आतंक के मोल है ,
आतंक के सोल है !
आतंक के बाजार में आतंक का पलड़ा भारी है !
साथ में मौत के सौदागर हथियार के व्यापारी है !

शब्दों के अर्थ बदले बदले से है ,
सभी को अर्थ दौलत से यारी है !
जिधर देखो उधर अर्थ के लिए मारा मारी है !
चेहरों पर कुटिलता हाथो में स्वार्थ की कटार है !
बनते बिगड़ते सूत्र हो गए है ,
सभी सवालों से घीरे है उत्तर किसी के पास नही है !

कैसे किस से क्या हिसाब करे ,
समीकरणों पे चलती दुनिया सारी है!
कलम की नोंक बोठरा सी गयी है ,
साहित्य की स्याही भी सुखी सुखी है !
कलमकारों को भी शोहरत इज्जत प्यारी है !
कैसे सर्जन श्रृंगार हो इस धारा का ,
जब हर तरफ़ विघटन विधवँस की बिखरी चिंगारी है !

Wednesday, October 22, 2008

निवेदन

ओपन ख़ाने नही देता है ,
क्लोज सोने नही देता है !
सुबह आ गया तो शाम ,
होने नही देता है !
इस चक्रवियु को अभी तक कोई भेद नही पाया है !

लाखो के वारे न्यारे हो जायेंगे !
इसी उधेड़बुन में जो इसमे घुस गया ,
बहार निकल नही पाया है !
दिमाग और धन दोनो गवाया है !
हर दिन तर्क कुतर्क लगाकर ,
अपना दिमाग खपाया है !

अपना गणित जमता है ,
कभी खुल्ले कभी जोड़ी लगाता है !
नही आने पर एक अंक से चुक गए ,
इसी अफ़सोस में कुछ देर पछताता है !
अगले दिन आने की उम्मीद में फिर फंस जाता है !

मैने तो अभी तक अच्छे अच्छे को ,
इसमे बरबाद होते देखा है !
किसी किसी को तो घर के बर्तन बेंचकर ,
सट्टा लगाते देखा है !
स्थानीय खाईवाल को पुलिस के डंडे खाते देखा है !

फीर भी सट्टा खाने से बाज नही आता है ,
अपने ही दोस्त मित्र गाँव वालो को रोज रोज फंसाता है !
हर दिन हजारो में इकठ्ठा करके ,
आपने ही गाँव का धन बहार भिजवाता है !

माना की ये एक खेल है अंको का मेल है ,
मिंडी से नौका तक की रेल है !
करोड़ो खिलाडियों को हर दिन खिलाता है !
मगर मेरे देखते देखते आज तक कोई ,
धनपति नही बन पाया है !
अगर सटोरिये लखपति बन गए होते तो ,
इससे चलने वाला कटोरा लेकर भीख मांग रहा होता !
और सट्टा कभी का बंद हो गया होता !

दोस्त ऐसा नही है !
उसके तो करोड़ो के वारे न्यारे हो गए है ,
मस्ती के गाने है खुशियों के तराने है !
मगर हमारे कई परिवार के छिन गए खाने है !
आपके दो दो चार चार दस दस बीस बीस ,
रुपयों के गठ बंधन से ऐशो आराम फरमाता है !
मौखिक आदेशों और निर्देशों से ही अपना प्रशाशन चलाता है !

उसके आगे हमारा प्रसाशन भी कुछ नही कर पाता है ,
वह तो सरकार को भी ठेंगा दिखता है !
और दिखा रहा है !
और वर्षों से अपनी स्वतन्त्र स्थाई सरकार चला रहा है !
वह तो अपने अंको के जादू से ,
अपने करोड़ो समर्थको से हर दिन ,
पर्ची डलवाकर आपना समर्थन जुटा रहा है !

करोडो को कंगाल पति बनाकर ,
ख़ुद को करोड़पति बना रहा है !
इस लिए ही तो कहता हूँ यारो दोस्तों ,
इस चक्रवियु में कभी मत फँसना !
अपनी हंसती खेलती जिंदगी को तबाह ,
होने से बचाए रखना !
और जो फंस गए है उन्हे भी इसमे से ,
निकलने की कोशिश करते रहना !
यही निवेदन यही मेरा कहना !

सूरज के प्रश्न

ये जिंदगी गमों का सागर है ,
खुशियों का सरोवर कैसे बने !

निराशाओं के अंधेरे में ,
आशा की किरण जगे तो कैसे जगे !

नागों ने डस लिया है कलियों को ,
खुशियों के सुमन कैसे खिले !

जब सारे चमन में नागफनी उग आए हो ,
गुलाब खिले तो कैसे खिले !



जंहा बदले और नफरत के बीज हो ,
वहाँ नेह का कमल खिले तो कैसे खिले !

काली गहरी धुंध छाई हो आसमान पे ,
वंहाँ मोहब्बत की खुशबू बहे तो कैसे बहे !

उम्मीदों की रौशनी कहीं नजर आती नही ,
अंधेरो की बस्ती में सपन सजे तो कैसे सजे !

सूरज के प्रश्न है ये कुछ अटपटे उलझे ,
इंनके उत्तर मिले तो कहाँ से कैसे मिले !

मेरा भारत महान

खास लोगों की मुट्ठियों में कैद है ,
आम लोगों की तकदीर !
मेरा भारत महान की ,
क्या यही है तस्वीर !
चाँद आकाओ के हाथ में है ,
मेरे महान देश की कमान !
क्या ये देश को ले जाते है सही मुकाम !

मुट्ठी भर हाई कमानों ने थाम रखी है ,
देश के सारे नेताऒ की लगाम !
क्या मेरे देश के ऐसे नेता कह सकते है ,
मेरे देश का लोकतंत्र है सही मुकाम !

महलों में रहने वाले एयर कंडिशनर कमरों में ,
बैठकर गरीबी हटाने की बात करते है !
और गरीब फुटपाथ पे पड़े पड़े भूख से मर जाते है ,
ठंडी और लू में गरीब यूँ ही हट जाते है !
क्या कह सकते है मेरा भारत है महान !

जहा पिच्यासी करोड़ बेहाल स्थिति में है ,
क्या यही है मेरे देश की आन और शान !
देश के कर्णधार अपने सवार्थ के लिए ,
तोड़ते कानून नियम संविधान !
सत्ता पर काबिज होते ही हो जाते है बे लगाम !
देश जाए रसातल में जनता जाए भाड़ में ,
ये बनते सुधारते है अपने दाम और काम !

गाँधी जी और अम्बेड्कर की आत्माए ,
अगर कहीँ जिन्दा होती !
मेरे देश की स्थिति देख वो भी रोती !
मेरे देश के लोग भी है बड़े महान !
फ़िर भी मेरा देश आगे बड़ रहा है ,
चल रहा है प्रगति कर रहा है !
दुश्मनों से लड़ रहा है ,
लगता है सब भगवान् भरोसे ही चल रहा है !

यदि ये सब कुछ उल्टा पुल्टा न होकर ,
सब कुछ ठीक ठाक होता तो !
आज मेरा देश विश्व का सिरमौर होता ,
मै ही नही कहता मेरा भारत महान !
सारा विश्व कहता भारत है महान !

अब भी कुछ नही बिगड़ा है वक्त है ,
बस आवश्यकता है द्रण इच्छा शक्ति की संकल्प की !
कर सकते है भारत का नव निर्माण ,
आवश्यकता है चन्द देश प्रेमियों की !
मुट्ठी भर क्रांतिकारियों की आम लोगो की जाग्रति की ,
फिर गर्व से कह सकते है !
मेरा भारत है महान !!

क्या किया इंसान तुने

ये क्या किया इंसान तुने -२ ,
जो पाले कांटे तेरे दामन में !
फूलो सी जिंदगी मिली है ,
खुशबू नही तेरे आंगन में !

किस दौड़ में शामिल हुआ है ,
जो फुर्सत ही नही है पल की !
जो ख़ीँच गयी है फ़िक्र की लकीरे ,
नजर आती तेरे आँगन में !

वो छुटा माँटी का ओटला घर की दहरी ,
खुला खुला सा आंगन घर की कचहरी !
मिली दर दर की ठोकरे फांके फजिते ,
चल चल पड़ गए छाले तेरे पाँव में !

ये कैसा ताना बाना बुना है ,
जो हर तरफ़ जाल से बिखरे हुए !
जिसमे मन का पंछी ऐसे फंसा है ,
जो चहका नही है मन भवन में !

ये कैसा घोला है जहर हवा में ,
जो खुशियाँ बरसती नही है सावन में !
वो मस्तियों की चुल बुलाहट नही है ,
सब रंग बेरंग हुए है बसन्ती फागन के !

होठो पे मुस्कान नही है ,
आंख़ो में नही है खुशी ,
गम ही गम है मन की आंखे बुझी बुझी सी !
बहारे भी तो गुमसुम गुमसुम सी है ,
पतझर सा लगा है सुख चैन तेरे आंगन में !

Tuesday, October 21, 2008

देश का अंक गणित

हजार चोरों में एक साहूकार हो तो ,
क्या क्या कुछ कर पायेगा !
जब सारे आसमान में छेद हो गए तो ,
कहाँ कहाँ ठेगले लगायेगा !
जब साडी सड़क ही खड्डे से पटी है ,
कौन कौन से गड्डे भर पायेगा !

हर आदमी जख्मी हो कर बैठा है ,
कौन किस के जख्म भरेगा !
कौन किसके लिए जख्म भरेगा ,
कौन किसके लिए मरहम बनेगा !

करता है कोई भरता है कोई ,
करता है मुंच वाला पकड़ता जाता है दाड़ी वाला !
मगर मुछ्मुन्डो के हुजूम में ,
कौन किसी की कैसे पहचान करेगा !
जब चोर सिपाही हो जाए मौसेरे भाई ,
तब कौन किसको पकडेगा !
और जब एक ही कुर्सी के हो जाए अनेको खसम ,
तो कुर्सी का चरित्र भ्रष्ट्र होने से कैसे बचेगा !

जब शकुनियों की जमात की जमात हो ,
उंनके लिए कौन तो युधिष्टिर और कौन कौन दुर्योधन बनेगा !
और अर्जुन का तो दूर दूर तक पता ही नही है !
कही भूले से श्री कृष्ण इस जमीं पे अवतरित हो गए ,
तो किसके रथ के सारथि बनेंगे !
कलयुग में रोज रोज के घर घर में हो रहे ,
महाभारत के लिए कौन कौन धर्म युद्ध लडेगा !
गीता ज्ञान कौन कहाँ किस को सुनाएगा !

जहा पितामह जैसे ही सत्ता कुर्सी के लोभी हो ,
वहा राज देश के लिए कौन सर्वर्स त्याग करेगा !
आँखों से देखते हुए भी अपने पुत्रो की तरफ़ से ,
उंनके पिता धत्राष्ट्र हो गए है !
जिनके गली गली में घूमते कोरवो से लड़ने के लिए ,
मजदूर की तरह हुए द्रोन कहाँ से पांडव तैयार करेगा !
गली गली में दुशाशन हो गए है !
कब कहा किस का चीर हरण हो जाए तो ,
अकेला कृष्ण कहाँ कहाँ चीर बडाने को खड़ा रहे !
और जहा देखो वहा भीक मांगो की भीड़ लगी है ,
कौन दान वीर कर्ण बनेगा !

एक साधू हजार सैतान ,
एक काजी हजार कफीर !
धर्म भी कब तक दम भरेगा !
हजारो गद्दारों में एक देश भक्त ,
कब तक देश भक्क्ति का चराग रोशन रखेगा !
अपनी अपनी दाड़ी की आग बुझाने में सब लगे है ,
देश की आग बुझाने को कौन अपने हाथ जलाएगा !
ऐसे देश की समस्याओ को उपचार कैसे हो पायेगा !

जो जमीन पचास बरस पहले ३० करोड़ के लिए थी ,
उस पर सो करोड़ हो गए है !
जन संख्या व़द्धी ने सारी व्यवस्था को ठेंगा दिखा दिया है !
चाहे प्रधान मंत्री हजार माथे का हो जाए ,
क्या खाख व्यवस्था करेगा !
एक की जगह हजार है जहाँ देखो वहा कतार है ,
एक अनार हजार बीमार है !
हर आदमी सरकार के भरोसे बैठा है ,
जबकि सरकार ख़ुद आनेको बैसाख़ीयो पर खड़ी है !
क्या किसी समस्या का उपचार हो पायेगा !

भगवान् स्वयं भी जमीन पर उतर आए तो ,
यह सब कुछ देख कर घबराकर मरने के लिए ,
चुल्लू भर पानी ढुँडता फिरेगा !
तो वह भी उससे नही मिलेगा !!

पिता का ता़स

जब भी उसकी शादी की बात उठती है ,
उसके पिताजी के सामने एक ही प्रश्न आ खड़ा होता है !

ये बेरोजगार नालायक निकम्मा बीबी को क्या ख़िलायेगा ,
क्या पहिनायेगा क्या ओडायेगा !
ख़ुद का पेट तो भर नही पा रहा है ,
क्या उसकी बड़ती हुई मांग की पूर्ति कर पायेगा !

मगर बेटे का कहना है की मेरी शादी करके तो देखो ,
बीबी को मलाई के लड्डू खिलाऊंगा !
नई नई साडिया पहिनाऊँगा ,
घुमाने फिरने ले जाऊंगा सिनेमा दिखाऊंगा !
नगर में अपनी भी उधारी चलती है ,
अपनी भी कोई साख है !

उस की मांग में भरूँगा,
तो उसकी बड़ती हुई मांग की पूर्ति भी में करूँगा !
जब खर्चे की मार पड़ेगी तो ख़ुद ,
कमाने निकल जाऊंगा !
आपनी ग्रहस्ती की गाड़ी ख़ुद चलाऊंगा !
माँ कसम पिताजी आप को नही सताऊंगा !

मगर पिताजी को शक है की ,
मेरी साख पर बेटे की साख है !
पिताजी का कहना है की इतनी बड़ती हुई,
उधारी कब तक चुकाऊंगा !
इस लिए मैने भी ठान रखा है ,
जब तक ये आपने पैरो पे खड़ा नही हो जाएगा ,
इससे घोडी पे नही चड़ने दूंगा !

एक बेरोजगार निक्कमे की शादी नही राचाऊँगा ,
चाहे उमर भर कुंवारा रह जाए !
मैने यदि शादी करवादी तो ,
अभी तीन है तीन से चार चार से छः हो जायेंगे !
इस महंगाई के दौर में बेचारी अकेली पेंशन में छः छः ,
का खर्चा कैसे चलाएंगे !
में तो बेमोत मारा जाऊंगा !

अतः इसकी शादी की बात मेरे सामने मत छेडिये बस रहने दीजिये ,
पहले इसके रोजगार की व्यवस्था कीजिये ,
फ़िर आकर इसकी शादी की सलाह दीजिये !
कृपया मेरी दुखती रग पे हाथ मत रखा कीजिये !!

सच

क्यों नही है इस जहाँ में सच की बातें सच की ताकत !
सच तो सूली पर चडा है झूठ की होती है इबादत !!

क्या हो गया इंसान तुझको इंसानियत तुझसे नदारत !
झूठ की वकालत करता है, झूट की बड़ती है ताकत !!

स्वार्थ की भाषाओ में चलती है झूठ की ही इबारत !
न्याय भी साक्षों पे चलता है साक्ष से सच होता नदारत !!

सच से निकलकर झूट झूट के हाथी पे बैठ है बन महावत !
हर झूट को सच साबित करे हम इतनी हासिल है महारत !!

संस्कृति तो धूमिल हो रही है सच का दर्पण था ये भारत !
किताबो में बंद हो गयी है रीती निति की कहावत !!

हर दिन पड़ते और सुनते है गीता रामायण भागवत !
क्या देती है हमको ये इजाजत जो करते है हम सच से बगावत !!

सच पूछो तो इस जहाँ में सच में यही हकीकत !
ये सूरज किसी ने सच ही कहा है सच की राह में है मुसीबत !!

वो मरना नही है अमर होना है जिसने की है सच की इबादत !
जिसने सच का थामा है दामन उसकी रब भी करता है हिफाजत !!

इंसानियत का नाता

इस छोटी सी जिंदगी में नफरत ना पालो दिल में ,
दिल को बना लो प्यार मोहब्बत का आशियाना !

आज है यहाँ तो कल होगा कहाँ ठिकाना ,
पल का नही भरोसा इन् राहों पे कब है आना !

ये जिंदगी एक सफर है चलता है आना जाना ,
आते जाते यहाँ मुसाफिर दिल किसी का नही दुखाना !

हो गम की ठोकर तो फिरभी न लडखडाना ,
मुस्कुराहटोँ की ठोकरों से मुश्किलें युही हटाना !

निराशा रोके राहे नही पीछे कदम हटाना ,
उम्मीदों के होसलों पे आगे कदम बडाना !

मोहब्बत तो मजा है ये खुशियों का है खजाना ,
महकेगी जिंदगी ये जो मोहब्बत का फूल खिलाना !

हर दिन होती नयी सुबह तो बिता कल काहे दोहराना ,
आ चला चल ओ मुसाफिर मंजिल तुझे जो पाना !

जाती धर्म मजहब के नाम पर किसी से रिश्ता नही बनना ,
हम इन्सान है सभी तो इंसानियत का नाता सबसे हमें निभाना !

नेताजी बन जाइये

ग़दर, माँ तुझै सलाम, २३ मार्च १९३१ शहीद,
टी लिजेंड ऑफ़ भगतसिंह,
जैसी फिल्म देख देख कर हमे भी देश भक्ति उमड़ आयी !

हमारे तन बदन में देशभक्ति समां गयी ,
आज कल देश भक्ति दिखाई जाती है होती नही !
हम भी देश भक्ति दिखाने के चक्कर में ,
खादी परिधान पहन कर स्वतंत्रता दिवस समाहरोह में जा पहुचे !

हम जैसे ही आयोजन स्थल द्वार पे पहुचे ,
हमारे परम मित्र हमारे सामने आ गए !
और बोले आइये आइये नेता जी ,
वाकई जाच रहे हो बिल्कुल नेता लग रहे हो !

हम घबराए सकपकाए और सोचने लगे ,
मित्र ने हमें नेताजी कहकर हमारा सम्मान बढाया ,
या गली दी, समझ ना पाए !

हम कुछ कहते संभलते इससे पहले ही मित्र,
पत्रकार मुद्रा में आ गए !
और हम पर पर्श्नों की झडी लगा दी ,
और बोले अच्छा तो आप भी शामिल होने जा रहे है !
देश को बरबाद करने में किस टोल में हो ,
संविधान के साथ कौन सा बलात्कार करोगे ,
आकेले रहोगे या सामूहिक करोगे !

कौन सा कानून तोड़ोगे किस की गर्दन मरोडोगे ,
किसी गिरोह में शामिल होगे या अकेले रहोगे !
या ख़ुद अपना गिरोह बनाओगे ,
दलालों को कन्डीयों को घोटालियो को या दल बद्लुओ को ,
किस किस को शामिल करोगे !

किस प्रान्त में भ्रष्टाचार की घांस उगाओगे ,
और किस प्रांत में आग लगाओगे !
आम कांड करोगे या दलाली खाओगे ,
घपला करोगे या घोटाला बड़ा या छोटा !
सभी ने तो करोड़ो में किए है ,
आप इन् से कम रहोगे या आगे निकल जाओगे !

आप बुरा न माने तो एक बात पुछुँ ,
आप में शर्म लाज तो रहेगी नही !
हमारे काम के भी ना रहोगे ,
आप अपने काम और दाम बनाओगे !
आदमी जाती से तो बहार ही निकल जाओगे ,
वर्तमान में पलित और भविष्य में भूत हो जाओगे !

क्या यूरिया खाकर घांस पचाओगे ,
या शक्कर की चासनी में डुप्कीयाँ लगाओगे !
या नोटों का बिस्तर बिछा कर सो जाओगे ,
या पनडुब्बी में बैठ कर सागर की सैर कर आओगे !
या बोफोर्स तोप पर बैठ कारगिल की चोटी पर चढ़ जाओगे ,
हाथ किसी के न आओगे !

जैसे तैसे मित्र से पीछा छुड़ाकर आयोजन स्थल ,
के द्वार से घर आ गए !
हमें शीघृ आता देख श्रीमती घबराई ,
और पूछा इतनी जल्दी !
हमने कहा इस खादी परिधान में देख ,
मित्र ने हमें आदमी से जाने क्या क्या बना दिया !
और नेताजी कह कह कर गलियाँ दी !

सो श्रीमती जी टपक से बोली ,
तो बन जाइये ना नेता जी !
शायद हमारे भाग्योदय का समय आ गया है ,
हमारे सारे दुःख दूर हो जायेंगे !
हम सभी सुख राम हो जायेंगे !
हमारी आने वाली पीडियाँ तर जाएँगी ,
पीड़ी तो पीड़ी हमारे पुरखे भी तर जायेंगे !
खुशी से नगाडे बजायेंगे !

देखो लालू को करोड़ो का चारा खाकर भी ,
छूटपल्ले घूम रहा है !
रोज अखबार टी वी में आ रहा है ,
और राष्ट्रीय राजनीती पे छा रहा है !
नरसिंहा का क्या बिगड़ गया ,
निर्दोश हो कर स्वर्ग ही चला गया !
जयललीता का कोई कुछ नही बिगाड़ सका ,
मुख्य मंत्री बनकर सरकार चला रही है !
सुखराम सुखमय हवाला के सारे दोष दोष मुक्क्त हो गए ,
पनडुब्बी तोप दलाली जाने कहा खो गए !

में भी आपके मन मष्तिष्क की राबडी बनना चाहती हूँ ,
माय डीयर हसबैंड आप मेरे लालू बन जाइये !
कुछ दिन के लिए जेल जाने को तैयार हो जाइये !
किसी राज्य का सी ऍम मुझे भी बनने दीजिये ,
प्रान्त में भ्रष्टाचार की हरी हरी घास उगाकर ,
हमें भी चरने दीजिये !
आप भी सारे राज्य को खूब चरना ,
और दिल्ली में जाकर पचाना !
और सारे देश को चरना और संसद में जाकर डकारना !
प्लीज माय डीयर होनहार हसबैँड ,नेताजी बन जाइये बस !!

सफर

जाना है कही दूर हमें , जिंदगी के इस सफर में !

न पता है पास अपने , न ख़बर है उस डगर की !
न पता है वक्त का भी, न किसी को ये ख़बर है ! !

ना है हमें आकेले ही , ये खूबी है इस सफर की !
न कोई समान साथ होगा, न टिकट है उस सफर की ! !

ना के हमें बस यही, वापसी नही है उस सफर की !
उस सफर को मौत कहते है, ये सच्चाई उस सफर की ! !

आओ मेरे साँथ

जागो जागो नौजवानों जागो ओ जवानियों ,
भगत शेखर से जवानियों दुर्गा लक्ष्मी भवनियो !

तुम्हे क्रांति का शंख नाद फुकना है ,
दशो दिशाए तुम्हे आवाज दे रही है !
तुम्हे पुकारता है सारा जहान ,
ये धरती आसमान !

आगे आगे मै चलता हूँ आओ आओ मेरे साँथ ,
इंसानियत को डस रहे है हैवानियत के नाग !
ऐसे नागो के फन तुम्हे ही कुचलना है ,
आगे आगे में चलता हूँ आओ आओ मेरे साँथ !

राकछसी इरादे लील रहे है ,
बेगुनाहों की लाश !
यहाँ वहा लुट जाती है अबलाओं की लाज !
ऐसे राकछसी इरादों की बना आ लाश !

सुरसा सी सांसे निगल रही है ,
नव वधु की साँस !
ऐसी सुरसा सी सांसो से हो जाए दो दो हाथ !
भस्मासुर उग रहे है गाजर घास की तरह ,
इन्हे भस्म करना है दिखादो तांडव नाच !

शक्नुनियो ने बिछा आगे है आगे की बिछात ,
इन् के साथ साथ करदो गे कोरवो का नाश !
फिर से दोहरादों महाभारत इतिहास ,
कोई सुदर्शन चक्रधारी कोई अर्जुन कोई भीम बन जाए आज !

जो ईमान खा रहे लंच डिनर के साँथ ,
सचाई घोल पि रहे मय के जमो के साँथ !
रंगरलिया मन रहे है आजादी के साँथ ,
दरबान बना खड़ा लोकतंत्र वंहाँ आज !
ऐसे गद्दारों मक्कारों को सिखा दो सबक आज !

मानव बना है बम हाथ पे हाथ धरे बैठे हुए हम ,
फिर भी कहते नही थकते है शान्ति है शान्ति है !
ऐसी क्या मजबूरी है,
ऐसी मजबूरी से हो जाए दो दो हाथ !
आगे आगे में चलता हूँ आओ आओ मेरे साँथ !

लीक से हटकर

लीक से हटकर कुछ करने के लिए ,
हिम्मत चाहिए कुछ करदिखाने का जस्बा चाहिए !
ये जमाना क्या कहेगा इस फितरत से ,
दिमाग तो मुक्ति चाहिए !

रस्म रिवाजो की जकडन में कब तक जकडे़ रहोगे ,
रुडियो की उलझनों से निकलने के लिए ,
विचारो की क्रांति चाहिए !

यदि परिवर्तन चाहते हो तो बदलाव का तूफान उठाओ ,
नया कुछ एसा कर दिखाओ की मिसाल बन जाए ,
अरे मशाल थामने के लिए कोई न कोई हाथ चाहिए !

कोरे खोखले झूठे दिखावो को आपनी शान समझते हो ,
जो संविधान और कानून के ख़िलाफ़ है ,
उससे अपने समाज का मान सम्मान समझते हो !

अपने मन के बनाये नियम कानूनों के पालन में ,
सारे सिधांत संविधान धरे रह जाते है !
जो किसी किताब में न लिखे हो ,
उन्हे आम समाज के सिधांत नियम कह कर अपनाए जाते हो !
और संविधान प्रदत्त कानूनों अपने स्वार्थ में एक झटके में तोड़ जाते हो !

और लीक से हटकर कुछ करने का मौका जब भी आता है ,
तो परिवार जाती समाज की बनाईं अंधी सुरंगों में ,
घुस जाते हो और बहार निकलने की हिम्मत ही नही कर पाते हो !
अवस्थाओ को कब तक कोसते रहोगे ,
कहने बकने बहस से कुछ नही बदल सकता है !

सच में अगर बदलाव चाहते हो तो ,
ख़ुद को अपने से ही शुरू करना होगा !
एक से अनेक होंगे अपने पीछे और भी होंगे ,
पगडन्डीयों ख़ुद बा ख़ुद बनती जायेगी उन् पर पथिक आते जाते रहेंगे !

अवस्था बदलने के लिए मस्तिशको का आनुस्थापट होना चाहिए ,
आकेला कुछ नही कर सकता इस हताशा से बाहर निकलना चाहिए !
इतिहास के पन्ने पलट कर देखो ,
जो कुछ भी हुआ है किसी ने अकेले ही शुरू किया है !
लोग साथ होते गए कारवाँ बनता गया !
अगर बनाना है तो आपने स्वार्थ और सुख की कुर्बानी होना चाहिए !

आओ मेर्रे साथ मुझे आप का साथ चाहिए !!
लीक से हटकर कुछ करने के लिए...........

चिराग रोशन रहो

चिराग रोशन रहो -२ ,
लगता है सुबह हुई नही !

सूरज तो ऊगा है मगर ,
धुंध अभी छ्टीँ नही !

लगता है दोपहरी आ गयी ,
नींद अभी खुली नही !

साँझ ढलने को है अभी -२ ,
ये दुनिया अभी जगी नही !

अंधेरो में भटके हुए है लोग ,
रौशनी अभी मिली नही !

जिस राह पे चलना है इन्हे ,
वो राह अभी मिली नही !

सब कुछ तो है मगर ,
खुशी इन्हे मिली नही !

सभी को एक ठोर की तलाश है ,
वो मंजिल अभी मिली नही !

किस राह चल पड़ी है सभ्यता जहान में

किस राह चल पड़ी है सभ्यता जहान में !
ये ज़मी ये असमा हुआ लहुलुहान है !!

हर मन अशांत है शान्ति का संदेश छुप गया ,
हिंसा खुले आम भाईचारा मर गया !
इंसान ही इंसान को अब तो डस रहा ,
इंसानियत पे कही आबतो छा गया कोहरा !
ये कैसी हवा चल पड़ी है इस जहान में !!
ये जमी ..............

जाती पंथो में बँट चला है काफिला ,
और मजहब का चल पड़ा है सिल सिला !
धर्मे की ध्वजा लिए उन्माद छा रहा ,
धर्म की दूकान से विध्वंस चल पड़ा !
ये कहाँ लिखा है गीता कुरान में !!
ये जमी.................

भ़स्टाचार खुलेआम और चरित्र गिर गया ,
अस्मते हुई नीलाम और शरीर बिक रहा !
ईमान के तराजू पर बईमान तुल रहा ,
सत्य की कमान से असत्य का तीर चल रहा !
ये उन्नति हुई यहाँ औछे विधान में !!
ये जमी.................

मजहबी जूनून कैसा है जो रक्त पी रहा ,
निर्दोष इंसान को तो ये निगल रहा !
धर्म धर्म के खिलाफ जहर उगल रहा ,
अदना आदमी ही ख़ुद को खुदा समझ रहा !
नफरत के बीज बो रहा इंसान ही इंसान में !!
ये जमी..............

आदमी बन्दूक की बारूद हो गया ,
हर तरफ़ से अब तो उठ रहा है धुआँ !
पानी और हवा में भी जहर घुल गया ,
अब तो आदमी भी रोजी रोटी से दूर हो रहा !
कैसे जीए अब कोई इस उजडे विहान में ,
ये जमी ये आसमा हुआ लहू लुहान है !
किस राह चल पड़ी है सभ्यता जहान में !!

मन का दिया

मेरे मन का दिया बुझ बुझ जाए रे !
गुथ गुथ मन की माटी रोज बनाऊँ मै !
ध्यान धरीं धरीं पकाऊँ मै !
संयम ने बल बल बाती रोज बनाऊँ मै !
उम्मीदों में भिगोइने भिगोइने रोज जलाऊँ मै !!

में खोया हुआ हूँ अपनों गैरों में ,
रिश्तो नातों में उलझा हुआ हूँ !
में जीवन की सच्ची राहों में भटका हुआ हूँ ,
वो जीवन की सच्ची राह दिखा दे !!

वो रौशनी मिले देख पाऊँ मै ,
ख़ुद को ही खुद में क्या !
ख़ुद ही में ख़ुद ही मै खोया हूँ ,
मै कौन हूँ मुझको बता दो !!

मै लालच की लहरों में बह बह जाऊँ ,
मोह माया की भवरों में कस कस जाऊँ !
आती है बुझाने नफरत की आंधी ,
कैसे बचाऊ मै मेरे मन का दिया !!

हर तरफ़ है अँधेरा छाया दौलत का कोहरा ,
कुछ आता नही है नजर सच झूठ की गलियों में !
टिमटिम टिमटिम टीमके मेरे मन का दिया ,
मेरे मन का दिया बुझ बुझ जाए रे !!

कभी तूफ़ान आते कभी झोके हवा के ,
मझदार में नैया कोई नही खिवैया !
डूब जाए ना मेरी नैया ,
ओ माझी तू ही पार लगा दे !!
मेरे मन का दिया बुझ बुझ जाए रे !

प्रार्थना

परमात्मा मेरी आत्मा में बसे हो तो ,
दर्शन दो मुझे मेरे रोम रोम में आ बसों !

वह शक्ति दो वह भक्ति दो वह बुद्धि दो !
तुम्हे जान सकूँ तुम्हे पहिचान सकूँ ,
तुम्हे देख पाऊ, वह द्रष्टि दो !!

मेरा रूप तू है तेरा रूप मै हूँ ,
तू मुझ मे मै तुझ में !
इस जीव जगत को बसाने वाला तू है ,
फ़िर ये कैसा मद भेद है !
ये मन भटके नही इससे भटकनो से निकल दे !!

किस मन्दिर में जाऊँ किस मूरत में पाऊँ !
हर सूरत में तू है कण कण में तू है !!
जीव जगत को चलाने वाला ही तू है ,
कहाँ कहाँ हो ये तो बता दो !!

में याचक नही मेरी कोई चाहत नही !
कुछ भी पाना नही ये सब कुछ तो है !
ये सुंदर सा तन ये निर्मल सा मन ,
तेरा दिया है इससे खोना नही है !
बस दया द्रष्टि तेरी बस तेरी कृपा हो !!

Monday, October 20, 2008

सबका मालिक एक

जिस दिल में बदले नफरत कोई रहता हो शैतान !
वो हिंदू ना रहा है ना रहा है वो मुसलमान !!

जहाँ बदले और नफरत का कोई रहता हो शैतान !
वहाँ रहीम रहा न रहा राम ना रहा कोई भगवान् !!

जहाँ प्यार मोहब्बत का सदा गूंजता है पैगाम !
वहीं रहीम रहते है वहीं रहते है वो राम !!

कहाँ खो गए रहीम कहाँ खो गए है राम !
जिनने प्यार मोहब्बत का सदा दिया है पैगाम !!

चाहे तासीर अलग -२ हो मगर सूरत तो एक है !
किस सूरत पे लिखा हिंदू किस सूरत पे मुसलमान !!

वो कैसा हुआ धर्म वो कैसा हुआ इस्लाम !
जो अपने ही नाम पे यहाँ लड़ रहा इंसान !!

अमन का देते है पैगाम जहा गीता और कुरान !
संग संग होती सुबह शाम जहाँ आरती और अजान !!

वहीं मजहब के नाम पर ही मौत के हवाले हुए सैकडो इंसान !
जो मन्दिर मज्जिद में बँट गया वो कैसा हुआ भगवान् !!

जिसने कभी बाँटा नही है नीर और बाँटी नही हवा !
जिसका एक ही सूरज और एक ही चाँद !!

जिसकी एक ये जमी और सारा ये आसमान !
जिनको दे दिए हमने ही अलग -२ नाम रहीम हो या राम !!

या कहो साईं राम जिसने सबका मालिक एक का दिया यंहाँ पैगाम !!

सरस्वती वन्दना

जयति -२ जय -२ जय माँ शारदे ,
शत शत वंदन अभिनन्दन !
माँ कोटि -२ नमन वंदे !! -२

ऐसी ज्योति जगादे मन में अज्ञान- का तम् हरले !
वीणा धारिणी हंस वाहिनी ज्ञान दायनी दुःख क्लेश हरले !
जयति.............................................................. वंदे !!

कटुता से जिव्हा अकुलाई वाणी में मधुर शब्द भर दे !
निज स्वार्थ तजे उपकार करे हम , हमारे एसे करम करदे !
जयति............................................................. वंदे !!

स्नेह का नीर बहादे दिल से छल दम्भ द्वेष हर ले !
भेद भाव सब दिल से हर ले जीवन में समता रस भर दे !
जयति............................................................. वंदे !!

धवल धवल निर्मल आंचल तेरा तेरे आंचल में सुख का बसेरा !
हर दिन हो खुशियों का सवेरा तेरी ममता हम पर कर दे !!
जयति......................................................... वंदे !!

कल कल नदिया गान करे झर झर निर्मल झरने बहे !
शीतल निर्मल पवन बहे हवा से विष हरण कर ले !
जयति........................................................ वंदे !!